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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
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त्यवंदनानां सूत्र त्रण थुनां कह्यां तेम पूर्वघर श्रागमोक्त तथा पूर्वाचार्योंत त्रण थुइ किया किया शास्त्रमां कहीले.
उत्तर - हे पूर्णनद्र प्रथमतो " शक्कछवाइचेइयवंदणं” इत्यादि श्रीमाहानिशीथ सूत्र वचनथी तथा " नस्सग्गो पारियंमि थुइ" इति नियुक्ति वचनथी शक्रस्तवादि चै - त्यदमक कायोत्सर्ग नंतर थुइ कहेवी पूर्वधरोना वचनथी थुइ सिद्ध थायले.
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वली श्रीयाराधनापताका जगवतीसूत्र १ वंदनपयन्नो २ कल्पनाष्य ३ व्यवहारभाष्य ४ कल्पसामान्य चूर्णि ५ कल्पविशेषचूर्णि ६ कल्पबृहद्भाष्य 9 श्रावउपकचूर्णि यावश्यक सूत्र ए कल्पनाप्यवृत्ति १० व्यवहारभाष्यवृत्ति ११ तथा नर पिण पंचाशकवृत्ति ॥ इत्यादि अनेक शास्त्रों में त्रणथुइए चैत्यवंदना करवी कही वे ए ग्रंथाने उल्लंघन करीने आत्मारामजी यानंदविजयजी थुनी चैत्यवंदना निषेध करेले अने च्यार थुनी चैत्यवंदना करवानो एकांते उपदेश करे बे, ए एवंनो मत जैनमतना शास्त्री ने पूर्वाचार्यांनी समाचारियोथी विरु-६ बे ते वास्ते जैनधर्मापुरुषोने एजंनी श्रद्धा न मांनवी जोइएं कदाचित् पूर्वकालमें -