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________________ १६८ परिच्छेदः 9 दिकनी समाप्तिकरवी कही, ए अभिप्रायथी प्रतिक्रमण एटले च्यावश्यकना उपधानमां सिद्धस्तवनु उपधान संनवे पण चैत्यवंदनसूत्रना उपधांनमां सिस्तव, न iva Ha विरति समदृष्टि तथा देशविरति श्रावक बेहूने चैत्यवंदनसूत्र उपधांन संनवे ने यावश्यकनु उपधान तो ए पाठना अभिप्रायथी देशविरतीनेज संनवे तेथीज श्रीमहानिशीथसूत्रमां चैत्यवंदनसूत्रना उपधांनमां सिद्धस्तवनां उपधान, न कह्यां ने श्राचारदिनकरमां सिद्धस्तवने उपधान विना वांचतुं कह्युं वली स्वस्वगसंबंधी उपधानविधि प्रकरणोमां श्रुतस्तव सिद स्तव, नामा बठा उपधानमां सिद्धस्तवनां उपधान कां ते प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध प्राश्रिसंनवे पण चैत्यवंदनामां, ए सिद्धस्तंव स्तुति रूपें ग्रहण संनवेढे ने प्रतिक्रमण श्रुतस्कंधमां स्तवस्तुतिरूपें संनवे अन्यथा गीतार्थोनां परस्पर विरोधि वचन ते विरोध पांमे तेम न करवुं, कह्युं बे जिनशासनमां थंननूत श्रीहरिनद्राचायें पंचवस्तुकमां ॥ तह वरकाणे अवं, तहा तहा तस्स अवगमो होइ श्रागमिमागमे जुत्तीगम्मं तु जत्तीए १ ए वचनथी प्रागमिकयुक्ति प्रागमप्रमाणथी तेनी सिद्धिथयां तेना अर्थ पण प्रमाणिक पणु अंगीकार
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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