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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १६ए करवू एटले जेम आगमवचन विघटे नही तेवी युक्तिएं गीतार्थोना वचननो अवगम अर्थ प्रमाण करवो विद्वजनश्रेय माने जे पण आगमवचन विघटे तेवी युक्तिथी अवगम अर्थनुं प्रमाण करवू विदऊन श्रेय मानता नथी. ॥ उपर लख्यानो सारार्थ एडे के स्वमत परमतमां सर्वविदऊन मूलशास्त्र उपर आधार राखेडे एटले स्वमत ते जैनमत तेमां गणधर पूर्वधरकत शास्रना आ. धारथी सर्व आचार्य शास्त्ररचना करेनें तथा तेलंनी सादीथी पोताना रचेला ग्रंथने समर्थन करेले पण गणधर पूर्वधरादि साहीना आधार विना जैनमतमां ग्रंथ प्रसार थता नथी तेमज परमत ते अन्यदर्शन तेमां मूल शास्त्रजे वेद तेना आधारथी पुराणादिक रचना करे अने तेचंनी सादीथी पोताना रचेला ग्रंथने समर्थन करेडे पण वेदांतनी सादीना आधार विना वेदांत मति, ग्रंथरचनाने प्रसार करता नथी तथाविध न्याय प्रमाणे आत्मारामजी तरफ आमंदविजयजी वर्तता नथी केमके चतुर्थस्तुतिनिर्णय पृष्ट १४ मामा जखे ने *ऐसेचोथुनि हरिनद्रसूरीजीके ग्रंथकरणेसें प्रथमही पूर्वधोंकियाचरणासेचलतीथी क्योंकेहरीनद्रसूरी कत ललितविस्तरामेचोथीथुश्का पाठहे ॥
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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