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________________ प्रस्तावना. १९ करवानो नाव असमंजस जासन थाय बे. केमके श्री श्री संखेश्वरजीथी श्री राधनपुर श्रावतां तो पांच पांच गाउ चाले, तो त्रण प्यार दहाडा लागे, ने जो ना चाले तो पांच सात दहाडा लागे, पण श्री राधनपुरना संघे श्री तेरवाडाना संघने लख्युं के व्यात्मारामजी तो १४ तथा १५ दाहाडे यत्रे अर्थात् श्री राधनपुरे प्राववाना बे, अने तेमनी साथै पंमितजी अर्थात् नामथी श्रावक अमीचंदजी बे ते प्रत्रे प्रावेला बे, तेमनी साथे चरचा करवी होय तो पत्रे विहार करज्यो. त्यारे श्री राजेंड़सूरिजी विचारयुं जे आत्मारामजी साधु नाम धरावे बे, तेमने पण बोलीने बदलवानुं ठेका नथी, तो ग्रहस्थिने बोलीने न बदलवानो श्यो जरूसो ? माटे परस्पर लखावट करी चरचा करवी ठीकछे. त्यारे श्री तेरवाडाना संधे श्री राधनपुरा संघ उपर पाढो कागज लख्यो. तेनी नक्कल जेम तेम लखीए बीए, श्री तेरवाडाथी ल संघ समस्तना प्रणाम वांचज्यो, जतरे यहीं श्री देवगुरुधर्म पसायी खेमकुशल बे आपनी खेमकुसल हमेसा चाहीए, विशेष विनती एबे के आफ्नो पत्र फागावद १२ नो लखे जो कासीद साथै आव्यो ते वांची समाचार जाणीने मुनीराजजीने मोए विनंती करी ने उपर एमनुं फरमाववुं जे लखत थाशे तो खेतरफ -
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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