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३० वा. वर्ष । • प्राणीमात्रको दु ख अप्रिय होनेपर-भी, और फिर उसे मिटानेके लिये, उसका प्रयत्न रहने पर भी वह दुख नही मिटता, तो फिर उस दुःखके दूर होनेका कोई उपाय ही नही है, ऐसा समझमे आता है, क्योकि जिसमे सभीका प्रयत्न निष्फल हो वह वात, निरुपाय ही होनी चाहिये, ऐसी यहाँ आशका होती है।
इसका समाधान इस प्रकारसे हे-दुखका स्वरूप यथार्थना समझनेसे, उसके होनेके मल कारण क्या है और वे किसमे मिट सके, इसे यथार्थ न समझनेसे, दु.ख मिटानेके सबधमे उनका प्रयतीस्वरूपसे अयथार्थ होनेसे दु ख मिट नही सकता। । ... दु ख अनुभवमे आता है, तो भी वह स्पष्ट ध्यानमे आनेके लिये थोडीसी उसकी व्याख्या करते है -
प्राणी, दो प्रकारके हैं-एक-वस स्वय भय आदिका कारण देखकर भाग जाते है, और चलनेफिरने इत्यादिकी शक्तिवाले है । दूसरे स्थावर-जिस स्थलमे देह धारण की है, उसी-स्थलमे स्थितिमान, अथवा भय आदिके कारणको जानकर भाग-जाने आदिको समझशुक्ति जिनमे नही है।
___अथवा एकेंद्रियसे लेकर पांच इद्रिय तकके प्राणी है। एकेद्रिय प्राणी स्थावर कहे जाते है, और दो इद्रियवाले प्राणियोसे लेकर पाँच, इद्रियवाले प्राणी, तकके, बस. कहे, जाते है। किसी भी प्राणीको पाँच इद्रियोसे अधिक इद्रियाँ नही होती। । FTER :
HTifi. एकेद्रिय प्राणीके पांच भेद हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति । ..
वनस्पतिका जीवत्व साधारण मनुष्योको भी कुछ अनुमानगोचर होता है। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुका जीवत्व आगम-प्रमाणसे और विशेष विचारवलसे कुछ भी समझा जा सकता है। सर्वथा तो प्रकृष्ट ज्ञानगोचर है।
अग्नि और वायुके जीव कुछ गतिमान देखनेमे आते हैं, परतु उनको गति अपनी समझशक्तिपूर्वक नही होती, इस कारण उन्हे स्थावर कहा जाता है।. .. FOSTFTE:
एकेंद्रिय जीनोमे वनस्पति जीवत्व सुप्रसिद्ध है, फिर भी उसके प्रमाण इस ग्रंथमे अनुक्रमसे आयेंगे । पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुका जीवत्व इस प्रकारसे सिद्ध किया है. .. . ... ... . अपूर्ण
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OF- सवत्,१९५३ : ' चैतन्य जिसका मुख्य लक्षण है, .:----
, -7 देह प्रमाण है, 1. असख्यात प्रदेशप्रमाण है। वह असख्याता प्रदेशता लोकपरिमित है, . . . . .
परिणामी है, अमूर्त है,. .
... .. . -1- . अनत अगुरुलघु परिणत द्रव्य है, वाभारि कर्ता है, ,:- i..
. भोक्ता है ,
. .
. अनादि ससारी है,
भव्यत्व लब्धि परिपाक आदिसे मोक्षसाधनमे प्रवृत्ति करता है. . . . | मोक्षाहोता है, . . . . . . . ( मोक्षमे स्वपरिणामो हे।
जीवलक्षण
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