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सिद्धात्मा
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श्रीमद् राजचन्द्र -,
: ससार अवस्थामे मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग उत्तरोत्तर बधके """ स्थानक हैं। . , . , . . . . . . . .,
सिद्धावस्थामे योगका भी अभाव है। . . . . . . .. ::: , - ... मात्र चैतन्यस्वरूप आत्मद्रव्य सिद्धपद है-1 - F. --- --विभाव परिणाम 'भावकर्म' है। . . . पुद्गलसबध 'द्रव्यकर्म' है।
. , , . . । अपूर्ण]
--- - ." संवत् १९५३ । ज्ञानावरणीय आदि कर्मोके योग्य जो पुद्गल ग्रहण होता है उसे 'द्रव्यास्रव' जानें। जिनेद्र भगवानने उसके अनेक भेद कहे हैं ।
जीव जिस परिणामसे कर्मका बध करता है वह 'भावबंध' है। कर्मप्रदेश, परमाणु और जीवका अन्योन्य प्रवेशरूपसे सबंध होना 'द्रव्यबध' है। - । .... .. - प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इस तरह चार प्रकारका बध है। प्रकृति और प्रदेशबंध योगसे होता है, स्थिति और अनुभागबध कषायसे होता है।
' जो आस्रवको रोक सके वह.चैतन्यस्वभाव , 'भावसवर' है, और उससे जो द्रव्यास्रवको-रोके वह 'द्रव्यसवर' है । . ,
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- ', .'व्रत, समिति, गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा और परिषहजय तथा चारित्रके जो, अनेक प्रकार है। उन्हे 'भावसवर' के विशेष जाने ।
जिस भावसे, तपश्चर्या द्वारा-या यथासमय कमके पुद्गल रस भोगा जानेपर गिर जाते हैं, वह 'भावनिर्जरा' है। उन पुद्गल परमाणुओका आत्मप्रदेशसे अलग हो जाना 'द्रव्यनिर्जरा है। ... सर्व कर्मोका क्षय होनेरूप आत्मस्वभाव ‘भावमोक्ष' है । कर्मवर्गणासे आत्मद्रव्यका अलग हो जाना द्रव्यमोक्ष है।
Er hirdy7- ' ' शुभ और अशुभ भावके कारण जीवको पुण्य और पाप होते हैं। सांता, शुभ आयु, शुभ नाम और उच्च गोत्रका हेतु 'पुण्य' है, 'पाप' से उससे विपरीत होता है।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षके कारण है । व्यवहारनयसे वे तीनो है । निश्चयसे आत्मा इन तीनोरूप है।
आत्माको छोडकर ये तीनो रत्न-दूसरे किसी.भी-द्रव्यमे नही रहते, इसलिये आत्मा इन तीनोरूप है, और इसलिये मोक्षका कारण भी आत्मा ही है।
जीव आदि तत्त्वोके प्रति आस्थारूप आत्मस्वभाव 'सम्यग्दर्शन' है; जिससे मिथ्या आग्रहसे रहित 'सम्यग्ज्ञान' होता है।
सशय, विपर्यय और भ्रातिसे रहित आत्मस्वरूप और परस्वरूपको यथार्थरूपसे ग्रहण कर सके वह 'सम्यग्ज्ञान' है, जो साकारोपयोगरूप है । उसके अनेक भेद हैं।
भावोके सामान्य स्वरूपको जो उपयोग ग्रहण कर सके वह 'दर्शन' है, ऐसा आगममे कहा है । 'दर्शन' शब्द श्रद्धाके अर्थमे भी प्रयुक्त होता है।
छद्मस्थको पहले दर्शन और पीछे ज्ञान होता है । केवलो. भगवानको दोनो एक साथ होते हैं। ____ अशुभ भावसे निवृत्ति और शुभ भावमे प्रवृत्ति होना सो 'चारित्र' है। व्यवहारनयसे उस चारित्रको श्री वीतरागोने व्रत, समिति और गुप्तिरूपसे कहा है।