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आचार्य अजितसेन के दुष्टों को दण्ड, शिष्ट पालन युद्ध, यान आक्रमण, शस्त्र इत्यादि का पूर्ण अभ्यास, नीति, क्षमा, काम-क्रोधादि षड्रिपुओं पर विजय, धर्मप्रेम, दयालुता, प्रजाप्रीति, शत्रुओं को जीतने का उत्साह, धीरता, उदारता, गम्भीरता, धर्म-अर्थ- काम प्राप्ति के अनुकूल उपाय, साम-दाम-दण्डविभेद इत्यादि उपायों का प्रयोग, त्याग, सत्य सदा पवित्रता, शूरता, ऐश्वर्य और उद्योग आदि का वर्णन राजा के विषय मे करना चाहिए । आशय यह है कि महाकाव्य मे राजा का वर्णन आवश्यक है । कवि राजा के वर्णन मे उपर्युक्त बातों का समावेश करता 1
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देवी महिषी के वर्णनीय गुण. -
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राजा के वर्णनीय गुण
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परवर्ती काल मे अजितसेन से प्रभावित होकर केशव मिश्र ने भी किञ्चित् शाब्दिक परिवर्तन के साथ उक्त राजगुणों का वर्णन किया है । 2
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अनुसार कीर्ति, प्रताप, आज्ञापालन, दृष्टनिग्रह -
सज्जनों की रक्षा, सन्धि, मेल-मिलाप, विग्रह -
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राजा के गुण वर्णन के पश्चात् अजित सेन ने राजपत्नी या देवी के गुणों की चर्चा की है । उनके अनुसार लज्जा, नम्रता, व्रताचरण, सुशीलता, प्रेम, चतुराई, व्यवहारनिपुणता, लावण्य, मधुरालाप, दयालुता, श्रृंगार, सौभाग्य, मान, काम सम्बन्धी विविध चेष्टाएँ, पैर, तलवा, गुल्फ (एडी) नख, जघा, सुन्दर घुटना, ऊरू,
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नृपे यश प्रतापाज्ञेऽसत्सन्निग्रह पालने । संधि विग्रह यानादि शस्त्राभ्यासनयक्षमा अरिषड्वर्गजेतृत्व धर्मरागो दयालुता । प्रजारागो जिगीषुत्व धैर्यौदार्यगभीरता ।। 1/27 अविरूद्धत्रिवर्गत्व सामादिविनियोजनम् ।
त्यागसत्य सदाशौचशौर्येश्वर्योद्यमादय ।। 1/28
अलकारशेखर 6 / 1 तथा 6 / 2, पृष्ठ
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अ०चि० पृष्ठ
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