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कटि, सुन्दर रोम पक्ति, त्रिवलि, नाभि, मध्यभाग, वक्षस्थल, स्तन, गर्दन, बाहु, अगुलि, हॉथ, दाँत, ओष्ठ, कपोल, आँख, भौंह, ललाट, कान, मस्तक, वेणी इत्यादि अग प्रत्यगों तथा गमनरीति एव जाति आदि का वर्णन देवी - महिषी के सम्बन्ध मे करना चाहिए ।' उक्त देवी विषय गुण वर्णन भरतकृत नाट्यशास्त्र से प्रभावित है किन्तु नाट्यशास्त्र में इसका उल्लेख अत्यल्प है जबकि अजितसेन ने इसका सविस्तार वर्णन किया है ।।
आचार्य अजितसेन से प्रभावित होकर कालान्तर मे केशवमिश्र ने भी 'अलकार शेखर' मे देवी के गुणों का वर्णन कुछ परिवर्तन के साथ किया है ।
राजपुरोहित के वर्षनीय गुण -
आचार्य अजितसेन के मतानुसार . शकुन और निमित्तशास्त्र का ज्ञाता, सरलता, आपत्तियों को दूर करने की शक्ति सत्यवाणी, पवित्रता प्रभृति गुणों का
देव्या त्रपा विनीतत्वव्रताचार सुशीलता । प्रेम चातुर्यदाक्षिण्यलावण्यकलनिस्वना ।। 1/29 दयाश्रृगारसौभाग्यमानमन्मथविभ्रमा ।। पत्तलोपरितद्गुल्फनखजड् धासुजानुभि ।। 1/30 ऊरुश्रीणीसुरोमालीवलत्रितयनाभय ।। मध्यवक्ष स्तनग्रीवाबाहुसाड् गुलिपाणय ।। ।/31 रदनाधरगण्डाक्षिभूभालश्रवणानि च । शिरोवेणीकबर्यादिगतिजात्यादिरेव च ।। ।/32 अचि0 पृ0 - 7 एभिरेव गुणैर्युक्ता सत्सस्कारेस्तुवर्जिता । गर्वितास्त्वपि सौभाग्यात् प्रीतिसम्भोगतत्पराः।। शुचिनित्योज्वलाकारा प्रतिपक्ष्याभ्यसूपिका । वयोरूपगुणाढयास्तु यास्ता देव्य प्रकीर्तिता ।।
ना०शा0 34/35, 36 देव्या सौभाग्यलावण्यशीलशृगारमन्मथा । त्रपाचातुर्यदाक्षिण्यप्रेममानव्रतादयः।।
अलकारशेखर 6/2 पृष्ठ - 62
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