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अमात्य, सेनापति, देश ग्राम सौन्दर्य, नगर, कमल सरोवर, धनुष, नद, वाटिका, वनोद्दीप्त, पर्वत, मन्त्र - शासन सम्बन्धी परामर्श, दूत, यात्रा, मृगया आखेट, अश्व, गज, ऋतु, सूर्य, चन्द्र, आश्रम, युद्ध, कल्याण जन्मोत्सव, वाहन, वियोग, सुरतरीतिक्रीडा, सुरापान, नाना प्रकार के क्रीडा विनोद आदि महाकाव्य के वर्ण्य विषय है । इन्होंने महाकाव्य के वर्ण्य विषय के सन्दर्भ मे नायक एव रस - सन्निवेश का उललेख नहीं किया इसका कारण यही हो सकता है कि इन्होंने काव्य स्वरूप के वर्णन मे ही 'नेतृसवर्णनाढ्यम्' के द्वारा सद्गुणों से युक्त नायक वर्णन का उल्लेख कर दिया था तथा रस का उल्लेख भी इन्होंने काव्य के स्वरूप विवेचन के सन्दर्भ मे ही 'नवरसकलितम्' पद के द्वारा कर दिया था 1 साथ ही साथ आचार्य दण्डी ने जहाँ 'चतुवर्ग फलायत्त चतुरोदात्तनायकम्' (का०० 1 / 150 का उल्लेख करके चतुर्वग फल प्राप्ति की चर्चा की है वहीं अजितसेन ने 'लोकद्वन्द्वोपकारि तथा 'पुण्यधर्मोरू हे तुम' का उललेख कर चतुर्वर्ग फलप्राप्ति के प्रति सकेत किया है क्योंकि इन्होंने काव्य को उभयलोक हितकारी बताया है ।
अत
महाकाव्य के वर्ण्य - वियष के सन्दर्भ मे भले ही नायक के सद्वृत्त तथा रस आदि का उल्लेख न किया गया हो तथापि अजितसेन को भी महाकाव्य के सन्दर्भ मे वर्णित उक्त विषय सादर स्वीकार है ।
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अजितसेन के उक्त वर्णन का स्रोत दण्डीकृत काव्यादर्श के महाकाव्य के लक्षण मे निहित है 12 परवर्ती काल मे केशव मिश्र ने कवि सम्प्रदाय रत्न मे काव्य मे वर्णनीय जिन विषयों का उल्लेख किया है वे प्राय महाकाव्य विषयक वर्णन से प्रभावित है । 3
अजितसेन कृत
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भूभुक्पत्नी पुरोधा कुलवरतनुजामात्यसेनेशदेश ग्रामश्रीपत्तनाब्जाकरशरधिनदोद्यानशैलाटवीद्धा । मन्त्रो दूत प्रयाण समृगतुरगेभर्वित्वनेन्द्वाश्रमाजि श्रीवीवाहा वियोगास्सुरतवरसुरापुष्कला नर्मभेदा ।।
दण्डी काव्यादर्श
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अलकारशेखर आफिस वाराणसी
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1 / 14-22 चौखम्बा विद्याभवन वाराणसी 1972
6/1 पृष्ठ 61 प्रकाशन
1927
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(अ०चि० 1 / 25
काशी संस्कृत सीरीज