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विजयवर्गी के अनुसार विट्ठलाम्बा का पुत्र कामिराय प्रथम दक्षिण कन्नड प्रदेश का शासक था । इससे विदित होता है कि अजितसेन भी दक्षिण प्रदेश के ही निवासी थे । इनका स्थान दक्षिण कन्नड जिले के तुलु प्रदेश के अन्तर्गत स्वीकार करना
समीचीन प्रतीत होता है ।
वश -
महाकवि अजितसेन काश्यप गोत्री विद्वान थे । इन्होंने ग्रन्थ की समाप्ति मे अपने गोत्र-सूत्र तथा शाखा- प्रवर का परिचय भी दिया है जिसके अनुसार इनका
सूत्र 'चाह्वान' था । ये 'प्रथमा-नियोग' शाखा के अध्येता थे । वश- परम्परा के अनुसार
इनका प्रवर 'वृषभ' था । जिसका उल्लेख इस प्रकार से किया गया है -
काश्यपे नाम्नि गोत्रे च सूत्रे चाह्वाननाम्नि च ।
प्रथमानुयोगशाखाया वृषभप्रवरेऽपि च ।
एतद्वशेषु जातोऽहम् -
अ०चि0 पृ0-335
इसके अतिरिक्त इन्होंने ग्रन्थान्त मे इक्ष्वाकु - वशोत्पन्न ससार मे पूज्यनीय 'बाहुबली' को नमस्कार किया है । तथा ग्रन्थ की समाप्ति 'प्लव' नामक संवत्सर,
जगत्पूज्य विन्ध्याग्रे इक्ष्वाकुवरवशजम् ।
सुरासुरादिवन्द्याडध्रि दोर्बलीश नमाम्यहम् ।।