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ज्ञान पीनमिद पराक्रमगुणस्तुगोनय कोमलो - रूप कान्ततर जयन्तनिभयो श्रीरायभूमीश्वर ।'
कमिराय को विजयवर्णी ने पाण्ड्यवग का भागिनेय बताया है ।
लिखा -
तस्य श्रीपाण्ड्यवगस्य भागिनेयो गुणार्णव । विट्ठलाम्बामहादेवीपुत्रो राजेन्द्रपूजित 2 ।।
"डॉ0 ज्योति प्रसादजी का अभिमत है कि अजितसेन ने ईसवी सन् 1245 के लगभग 'शृगारमञ्जरी' की रचना की है जिसका अध्ययन युवक नरेश कामिराय प्रथम बगनरेन्द्र ने किया और उसे अलकारशास्त्र के अध्ययन मे इतना रस आया कि उसने ईसवी सन् 1250 के लगभग विजयकीर्ति के शिष्य विजयवर्णी से शृगारार्णवचन्द्रिका की रचना करायी । आश्चर्य नहीं कि उसने अपने आदि विद्यागुरू अजितसेन को भी इसी विषय पर एक अन्य विशद ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा की हो, और उन्होंने 'अलकारचिन्तामणि' के द्वारा शिष्य की इच्छा पूरी की हो ।"3
उपर्युक्त पक्तियों में यह चर्चा की गयी है कि युवकनरेश कामिराय प्रथम बग नरेन्द्र थे और उन्होंने अजितसेन कृत 'शृगारमञ्जरी' का अध्ययन किया था और
शृगारार्णवचन्द्रिका, ज्ञानपीठ सस्करण, 10/195, पृ0स0-120 शृगारार्णवचन्द्रिका, ज्ञानपीठ सस्करण, 1/16 ।
'अलकारचिन्तामणि' प्रस्तावना, पृ0 - 33