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शरदऋतु अश्विन शुक्ला
को पूर्णता प्रदान की । '
व्यक्तित्व:
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किसी कवि या ग्रन्थकार के काव्य या ग्रन्थ के अनुशीलन से उसके व्यक्तित्व के विषय मे किञ्चित परिचय प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि काव्य कवि के हृदय निश्रित भाव धाराओं से अनुप्राणित रहता है । कवि की कृति उसके स्वभावानुकूल ही होती है । कवि ही वस्तुत काव्य जगत का स्रष्टा होता है । वह स्वेच्छा से काव्य जगत का निर्माण करता है । यदि कवि हृदय सरस हो तो निश्चित ही उसके द्वारा सरस काव्य का निर्माण होगा और यदि नीरस हो तो सरसता उससे कोशों दूर रहेगी । कवि का काव्य ही उसके सरस एव नीरस व्यक्तित्व का परिचायक होता है
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चतुर्दशी गुरूवार के दिन 'अलकारचिन्तामणि' नामक ग्रन्थ
अपारे काव्यससारे कविरेक प्रजापति ।
यथास्मै रोचते विश्वतथेद परिवर्तते ।।
सरसश्चेद् कवि सर्वं जात रसमय जगत् । स एव वीतरागश्चेन्नीरस प्रतिपद्यते ।।2
प्लवसवत्सरे मासे शुक्ले च सुशरऋतौ । आश्विने च चतुर्दश्या युक्ताया गुरुवासरे ।।
एतद्दिनेष्वलकारचिन्तामणिसमाह्वयम् ।
सम्यक् पठित्वा श्रुत्वाहं सपूर्णं शुभमस्तुन ।।
ध्वन्यालोक
अ०चि० पृ०-3350