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अप्रयोजक दोष दोष होता है ।
असमर्थ दोष. - दोष होता है ।
वाक्य दोष:
(1) छन्दश्च्युत, ( 20 रीतिच्युत, 30 यतिच्युत, 40 क्रमच्युत, (5) अगच्युत, (6) शब्दच्युत, 70 सम्बन्धच्युत, 80 अर्थच्युत, 190 सन्धिच्युत, [10] व्याकीर्ण, 7110 पुनरुक्त, 0120 अस्थितिसमास, 0130 विसर्ग लुप्त, 0 140 वाक्याकीर्ण, 0150 सुवाक्यगर्भित, 0 160 पतत्प्रोक्तकृष्टता, 0170 प्रक्रमभग, 0 18 0 न्यूनपद, 19 उपमाधिक, 200 अधिकपद, 210 भिन्नोक्ति, ( 222 भिन्नलिंग, [23] समाप्त, पुनरात्त और 240 अपूर्ण ।
आचार्य भामह ने अजितसेन के यतिच्युत को यतिभ्रष्ट क्रमच्युत को अपक्रम, शब्दच्युत को शब्दहीन तथा सन्धिच्युत को विसन्धि दोष के रूप में स्वीकार किया है । आचार्य अजितसेन ने उपमाधिक तथा भिन्नोक्ति दो नवीन वाक्य दोषों का उल्लेख किया है शेष दोष पूर्ववर्ती आचार्यों से प्रभावित है उनके नामकरण मे ही भेद हो सकता है पर सैद्धान्तिक भेद नहीं है ।12
वाक्य दोषों का स्वरूप -
Q 10
(2)
जहाँ केवल यौगिक से ही प्रयुक्त शब्द हो वहाँ असमर्थत्व नामक
।
2
जहाँ विशेषण से विशेष कुछ न कहा गया हो वहाँ अप्रयोजक
अजितसेन के अनुसार वाक्यदोषों का स्वरूप इस प्रकार है
छन्दश्च्युतः
रीतिच्युतः
·
जिस पद्य में छन्द का भंग हो उसे छन्दोभ्रष्ट या छन्दश्च्युत दोष कहते हैं ।
जिस पद्य में रस के अनुरूप रीति - पदगठन हो वहाँ रीतिच्युत नामक दोष होता है ।
वाक्याकीर्णसुवाक्यगर्भितपतत्प्रोत्कृष्टताप्रक्रम
भगन्यूनपरोपमाधिकपदं भिन्नोक्तिलिंगे तथा ।। समाप्तपुनरात्तं चापूर्णमित्येवमीरिता ।
चतुर्विंशतिधा वाक्यदोषा ज्ञेया. कवीश्वरै ।। अ०चि०, 5/209, 10
का०प्र०, 7/53-54 एवं 55 का पूर्वाद्ध
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