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दूसरा हेतु भी उपस्थित हो जाए तो वहाँ समाधि अलकार होता है । आचार्य अजितसेन का कथन है कि कार्य सिद्धि मे एक कारण के प्रवृत्त होने पर काकतालीय न्याय से जहाँ अन्य कारण की प्रवृत्ति हो और कार्य सुन्दर ढंग से प्रतिपादित हो जाए, वहीँ समाधि नामक अलकार होता है । ।
परवर्ती काल मे रूय्यक तथा अप्पय दीक्षित ने भी अजितसेन की ही भाँति काकतालीय न्याय से कारणान्तर के आगमन की चर्चा की है जो कार्य को सुन्दर ढंग से प्रतिपादित करने में समर्थ हो जाता है 12
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लोकन्यायमूलक अलंकार. -
भाविक
इस अलकार का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य भामह ने किया । इनके अनुसार भाविकत्व को प्रबन्ध विषयक गुण कहा गया है । जिसमे भूत एव भावी पदार्थों का प्रत्यक्षत अवलोकन किया जाता है । अर्थ की विचित्रता, उदात्तता, कथा की अभिनेयता, अद्भुतता और शब्दों की अनुकूलता इसके हेतु बताए गये है। 3
की है ।
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आचार्य दण्डी ने भाव का अर्थ कवि के अभिप्राय से लिया है जो सम्पूर्ण काव्य मे विद्यमान रहता है । इसीलिए भामह की भाँति इन्होंने भाविक को प्रबन्ध विषयक गुण ही कहा है । 4
रुद्रट, वामन तथा पण्डितराज जगन्नाथ ने इसकी चर्चा नहीं
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टीकाकार वामन झलकीकर के अनुसार अतीत तथा अनागत पदार्थों का
कार्यसिद्धयथमिकस्मिन् हेतौ यत्र प्रवृत्ति के । काकतालीयवृत्तोऽस्य समाधिरुदितो यथा ।।
(क) कारणान्तरयोगात्कार्यस्य सुकरत्व समाधि । (ख) समाधि कार्यसौकार्य कारणान्तर सन्निधे ।
काव्यालकार, 3/53-54
काव्यादर्श 2 / 364 - 366
31040 4/301
अ०स० सू० 68
कुव0, 118