SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :: 204 :: इस प्रकार से आचार्य अजितसेन के लक्षण में समुच्चय के तीन भेद किए जा सकते हैं - 10 क्रिया समुच्चय, 20 गुण समुच्चय, 36 किसी एक कार्य को सिद्ध करने में अनेक कारणों की उपस्थिति मे होने वाला-कारण समुच्चय । आचार्य विद्यानाथ कृत आदि के दो भेद अजितसेन से प्रभावित है और कारण समुच्चय रूप तृतीय भेद में इन्होंने खलेकपोतन्याय का भी उल्लेख किया है । जिसका उल्लेख अजितसेन कृत परिभाषा मे नहीं है । तथापि अहमहमिकया पद के भाव से प्रेरित होकर ही विद्यानाथ ने खलेकपोतन्याय का उल्लेख किया।' आचार्य विश्वनाथ ने भी अजितसेन कृत सभी भेदों को स्वीकार कर लिया है 12 समाधि - आचार्य भामह ने इसके उदाहरण को ही प्रस्तुत किया है जिससे विदित होता है कि आरम्भ किए गए कार्य में यदि कहीं से सहायता प्राप्त हो जाए तो वहाँ समाधि अलकार होता है।' आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ कारपान्तर के संयोग से कार्य सकर हो जाए, वहाँ समाधि नामक अलकार होता है । परवर्ती आचार्यों की परिभाषाएं मम्मट से प्रभावित हैं 15 आचार्य अजितसेन ने बताया कि जहाँ कार्य सिद्धि के लिए एक हेतु और अचानक उस कार्य को सुन्दर ढग से प्रतिपादित करने के लिए प्रवृत्त हो प्रताप०, पृ० - 555 सा0द0, 10/84-85 भा०, काव्याo, 3/10 समाधि सकरं कार्यकारणान्तरयोगत ।। का0प्र0, 10/125 का चन्द्रा0, सू० - 95 ख) र0म0, पृ0 - 664
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy