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अपर्तुति -
भामह के अनुसार जहाँ वास्तविक वस्तु को छिपाने के लिए अवास्तविक वस्तु का आरोप किया जाए वहाँ अपह्नुति अलकार होता है । किञ्चिदन्तर्गतोपमा के माध्यम से इन्होंने यह भी बताया है कि अपह्नति मे उपमा का होना आवश्यक है क्योंकि सादृश्य के कारण ही सत्यभूत वस्तु पर असत्य का आरोप करके सुगमता से छिपाया जा सकता है । भूतार्थ सत्य वस्तु का अपह्नव होने के कारण ही इसे अपह्नति की अभिधा प्रदान की गयी है ।'
आचार्य दण्डी ने अपह्नति को तीन स्थलों पर वर्णित किया है - उपमापह्नुति, तत्वापनुति एव नवरूपकापह्नति तत्वापह्नति मे सादृश्य तथा रूपकापलुति मे आरोप की सत्ता रहती है 12
उद्भट ने भामह के लक्षण को ही उद्धृत कर दिया है ।
मम्मट के अनुसार जहाँ प्रकृत का निषेध कर उस पर अप्रकृत उपमान का सत्य रूप मे आरोप किया जाए वहाँ अपह्नति अलकार होता है ।
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ उपमेय का निषेध कर अप्रकृत - उपमान का आरोप किया जाए वहाँ अपह्नुति अलकार होता है । इन्होंने इसके तीन भेदों का उल्लेख किया है -1 आरोप्यापह्नव, 12 अपह्नवारोप और 130 छलादि उक्ति ।
अपह्नुतिरभीष्टा च किञ्चिदन्तर्गतोपमा । भूतार्थापह्नवादस्या क्रियते चाभिधा यथा ।।
भा०काव्या0 3/21 उपमापर्तुति पूर्वमुपमास्वेव दर्शिता । इत्यपह्नुतिभेदाना लक्ष्यो लक्ष्येषु विस्तर ।।
का0द0 2/309 दृष्टव्य काव्यदर्पण - 2/95, 2/304, 2/94, 2/305, 308 काव्या० सा0स0, 5/3 प्रकृत यन्निषिध्यान्यत्साध्यते साऽत्वपर्तुति. ।।
का०प्र० 10/ उपमेयमसत्यं कृत्वोपमान सत्यतया यत्स्थाप्यते सात्वपनुति । वृत्त इद न स्पादिद स्यादित्येषा साम्यादपट्नुति । आरोप्यापह्नवारोपच्छलाधुक्तिभिदा त्रिधा ।। आरोप्यापह्नव अपहनवारोप्य छलादिशब्दरसत्यत्ववचन चेति त्रिधा सा ।
अचि0 4/135 एव वृत्ति ।