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डॉ0 देवेन्द्रनाथ शर्मा ने उक्त भामह कृत लाटानुप्रास के उदाहरण की इस प्रकार विवेचना की है "किसी कारण नायिका से अपरक्त नायक के प्रति यह दूती की उक्ति है - चन्द्रमा के उदित हो जाने से नायिका की विरह-वेदना बढ गयी है, अत अब तुम्हारी उदासीनता चित नहीं है । अपनी आँखों मे उदासीनता के बदले अनुराग भर लो जिसे देखकर नायिका की आँखें आहलादित हो जाय, अर्थात् उस पर प्रसन्न हो जाओ ।
यहाँ 'दृष्टि- दृष्टि' और 'चन्द्र-चन्द्र' मे शब्द एव अर्थ की पुनरूक्ति होते हुए भी तात्पर्य भेद है, इसलिए लाटानुप्रास है ।'
आचार्य उद्भट के अनुसार जहाँ स्वरूप एव अर्थ की दृष्टि से भेद न होने पर भी प्रयोजनान्तर से शब्दों या पदों की पुनरुक्ति हो वहाँ लाटानुप्रास होता है, इन्होंने इसके निम्नलिखित भेदों का उल्लेख किया है2.11 एक पदाश्रय, 02 पादाश्रय, 13 स्वतत्र- परतत्र, 14 पदाश्रय, 55 भिन्न पदाश्रय ।
आचार्य उद्भट के पश्चात् आचार्य मम्मट ने इसका निरूपण किया है उनके अनुसार शब्द और अर्थ मे अभेद होने पर भी जहाँ तात्पर्य मात्र से भेद की प्रतीति हो वहाँ लाटानुप्रास होता है । इन्होंने इसके पाँच भेदों का उल्लेख किया है - एकपदा वृत्ति, 12 पदसमुदाया वृत्ति नाम प्रातिपदिक वृत्ति, 03 एक समासगत, 4 भिन्न समासगत, 5 समासासमासगत । आचार्य रूय्यक तथा शोभा कर मित्र कृत परिभाषा मम्मट से प्रभावित है । 4
__ आचार्य अजितसेन ने लाटानुप्रास तथा छेकानुप्रास को अनुप्रास के भेद के अन्तर्गत ही स्वीकार किया है । लाटानुप्रास का केवल उदाहरण ही प्रस्तुत किया है, परिभाषा का उल्लेख नहीं किया ।
___ काव्यालकार - डॉ0 देवेन्द्रनाथ शर्मा, पृ0 - 32
काव्यालकारसारसग्रह प्रथम वर्ग पृ0 - 261 शाब्दस्तु लाटानुप्रासो भेदे तात्पर्यमात्रत ।
का0प्र0 नवम् उल्लास सूत्र - 113-116 का तात्पर्यभेदवत्तु लाटानुप्रास ।
____ अ0स0 सूत्र - 8 ख) तुल्याभिधेयभिन्नतात्पर्यशब्दावृत्तिलीटानुप्रास ।
अलकार रत्नाकर, सूत्र - 5