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APPENDIX II.
"अनुसासन लहि उदार ॥ कुल विदित वैस्य षंडेलवार | वलदेव नाम कवि नै विचित्र || यह रामचरित भाषा पवित्र ॥ २६६ ॥ विरच्या विलोकि पूरव प्रमान ॥ जो कह्यो कविन अमृत समान ॥ यह रामचरित नभ सम महान || मति मेरी लघु मसकहि समान ॥ जो सब्द अर्थ चित्रित यनूप ॥ ध्वनि विंगहु की जा मधि स्वरूप ॥ जुत भूषन अरु दूषन विहीन ॥ कवि या विधि की ओ काव्य कोन ॥ २६८ ॥ नहिं राम सुजस जाकी मार ॥ कवि घरगे न सेा कविता उदार ॥ तिहि वायस तीरथ सम कहंत ॥ नहि मञ्जुहि जा मधि सुकवि संत ॥ २६९ ॥ है रामु सुजल जामै अनूप ॥ प्रादरहि ताहि सव सुकवि भूप ॥ यातें विचारि याकौं निहारि ॥ कवि चूक होय लीजों सुधारि ॥ २७० ॥ दोहा ॥ श्रय नम नव संसि समय में माघ पंचमी स्वेत ॥ पूरख कोनौ राम जस गुरु दिन हर्ष समेत ॥ २७९ ॥ यह सकल अवनि उदार तिहि मधि विदित वज अवनी भली ॥ तिहि की अधीस महोप मणि वलमंत सिंह महावली || तिन हेत कवि वलदेव नै सुविचित्र रामायण कृतं ॥ श्री राम संगर विजय विसद चतुर्दशोंक समाप्तं ॥ लिप्पि कृतं ब्राह्मण गिरिधर ॥ पठनाथं श्रीमन महाराजाधिराज श्री ब्रजेंद्र वलमंत सिंघ जी शुभं भूयात् ॥
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Subject. - श्री राम चरित्र ।
. पृ० १ - मंगलाचरण -- शारदा स्तुति ।
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२ -- पुरवर्धन - भरतपुरका ।
३- प्रयोध्या वर्णन ।
४ - कथारम्भ – रामचरित्र वर्णन ।
२१- सिय
पानि
पीड़न - प्रथम अंक
२५ - सिया राम विलास वर्णन-द्वितीय अंक
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, १२७ - मंत्री वचन
४१ - वनयात्रा
४६ - सीताहरण
६९ - वैदेही वियोग
८५ -- हनुमान विजय
९३ - सेतुबंध
११३ - सुत वालि अंगद दूत
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१३५ - माया कपट
| १५३ - कुंभकर्ण विनाश
13.
१६० - मेघनाद संहार
" - तृतीय
- चतुर्थ
,,, - पञ्चम
,,, षष्ठ
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सप्तम
-अष्टम
-नवम
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" दशम
,,— एकादश
"― द्वादश
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