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APPENDIX II.
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एक पुरुष निर्मयऊ । तेहि ते भे अचिंत परमातम ॥ तहि की प्रभा अनेकन पातम ॥ परमातम ते भयो निरंजन ॥ अंड एकैश जासु कर भंजन ॥ तेहि का माता जेठ अनादो ॥ भगिनी जाति और जगवादो॥ सा अनादि मारे है नामा तेहि ते पंचतत्व की सामा ॥ मोरे पंचवक तन माहीं ॥ सब समुझाय कहाँ तुम पांही ॥
End.-जब भूचरि को साधे कोई ॥ सूर वार तिथि स्वासा होई ॥ मंत्र । उसंती सु ॥ पृथ्वी तल चलै जै वारौ ॥ समुझि समुझि इह मंत्र विचारी॥ मानु उदय स्वर सूर किनारा ॥ फिरि तेहि कर होय तिथि वारा॥ तव ते साधन को चित धरई ॥ जव इहि रीति प्रोति सेा करई ॥ इह ररि संवत भानु बितावै॥ तब तेहि कहा मंत्र फल पावै ॥ जप मंत्र पृथ्वो के जोग तंदुल सदा करैसा भोगू॥ दहिने स्वर नित भोजन पावै ॥ वाये स्वर नित पानि पियावै ॥ हरें लघु नित नव नव बाई॥
अपूर्ण
Subject.-ब्रह्म सृष्टि ज्ञान तथा योग साधन वर्णन ।
No. 15. Vichitra Ramayana by Baladeva. SubstanceCountry-made paper. Leaves-216. Size-11] x 71 inches. Lines per page-14. Extent-3,000 Slokas. AppearanceNew. Character-Nāgari. Date of composition--Samyat1903. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur Stato. ___Beginning.-श्री गणेशायनमः ॥ दोहा ॥ विनय करत है। प्रथम हो गणपति पद सिरनाय ॥ जिनके सुमरण ध्यानत उर प्रज्ञान विलाय ॥१॥ कवित ॥ मंगल करन नौ हरन अमंगल सव दारिद विदारन हैं टारन कलेस के ॥ असुर संघारन हैं सारन सकल काज वारन वदन धाम आनंद विसेस के ॥ सोभित परस पानि सेवक सुष निधान हारन की अघ तम सम हैं दिनेस के ॥ विपति निवारन हैं तिहूं ताप जारन हैं विधन विडारन हैं सुवन महेस के ॥ २॥ पूरन मयंक के समान स्वेत अंग जोति उज्वल सुधा से स्वेत अंमर उदास हैं । पंकज कतार खेत पासन उदार जाके वाहन मराल पै विराजै सुषधांम हैं। पुस्तक को धारै कर वेदन उचारै मुष सारै काज जन के सकल गुण ग्राम हैं। वीनहि बजावै सव सुष सरसावै वहु ताहो सारदा के पद कमल प्रनाम हैं ॥ दोहा॥ गुरु पद पदम पराग वर मम मन मधुपहि राषि ॥ राम चरित भाषा कौं निज मति उर पभिलाषि॥४॥
End.-ऊंद पदरी ॥ पुनि ताते यह नाटक महान ॥ तिहु लोकनको पावन प्रमान वर चंद्र वंस मैं प्रकट चंद ॥ वलमंतसिंह वृज अवनि इंद्र ॥२३॥