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APPENDIX II.
कासी है वासी कैलासी ॥ जहं प्रति दवान मुक्ति नेवांसी ॥ तहं दुर्वासा रिषि का यास्थाना ॥ प्रगट प्रसिधि सकल जग जाना ॥
End. - दोहा ॥ अर्थ धर्म कामादि कल सुनि पावै नर साई || काम को लाभादि मद जाही भांगी द्रुति गोई ॥ येह चरित्र श्री कीशन के पंडव पाराकर्म ॥ कहहिं सुनहिं नर चित्र धरि कोन मनहुँ सब धर्म ॥ चोर करम आदिक अधिक पर त्रिय जो रत होई ॥ कोरून नाम ते तरहिं सब पाप छनक मह घेोई ॥ इति श्री महापुराणे डंगापर्भ महाभारथे श्री कोस्न चंद्र कवरी पंडव संग्राम वरनन कवि वलवीर नाम पंचमो अध्याये ५ ईती श्री ढंगव पर्भ समाप्त सुभ मिती चैत्र सुदी १२ तारीख १३ अपरैल संमत १९४६ सन् १२९६ योमता अंग्रेजी सन १८८९ ईसवी दसखत जगजोवन लाल कायथ मौजा सोढिया तालुके कोलमई परमना अरपेल जीला ईलाहाबाद दोहा || जो प्रति देखा सा लिखा हि न दीजै खरि ॥ ग्यानो जन सेा वोनति वांचव प्रछर जोरि ॥
Subject. - ढंगै पर्व महाभारत युद्ध वर्णन अर्थात् कौरव और पांडवों की लड़ाई । प्रारंभ में ही कवि ने अपने निवास स्थान तथा कुल का संक्षेप वर्णन किया है और अपना संवत् लिखा है ॥
No. 14. Chinta Bodhana by Bala Dāsa. Substance-Country-made paper. Leaves-8. Size 7 × 3 inches. Lines per page-32. Extent-350 Ślokas. Incomplete. Appearance-old. Character-Nagari. Place of DepositSaraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
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Beginning. - श्री सोताराम ॥ छंद ॥ जय गुरू महाराज प्रभू ॥ अनंत धर्म धाम धू ॥ समस्त जक्क लोचनं ॥ समूह पाप मोचनं ॥ अनंद रूप सेाहितं ॥ महेश शेष मोहितं ॥ पदारविंद पंकजं ॥ अजादि देवता भजं ॥ गंभीर ग्रंथ को कराँ ॥ विचार भीर को धराँ ॥ प्रबंध कंद निर्मितं ॥ कर्वोद्र साथ के हितं ॥ पपाह पुन्य कीजिए || दीदार दान दीजिए भनंत वालदासयं ॥ प्रबंध जरू भासयं ॥ दोहा ॥ श्री सतगुरु गंभीर मति प्रति विनती कर जारि ॥ चिंता वेध जगत जेहि फिरि तेहि पाछे मोरि ॥ १ ॥ शरन भये शंका हरा वांह गहे की लाज ॥ चिंता वोधन ग्रंथ को पूरन करु महाराज ॥ १ ॥ श्री मारकंडे उवाच ॥ कहा शंभु अंतर कर भावा ॥ कारन कौन कौन निर्मावा ॥ केहि विधि पवन गगन भा शंकर ॥ मेोहि समुझावो से मुनीन्द्रवर ॥ आदि पंत समुझावो मोहो ॥ यथा जोग जेहि भांतिन्ह होई ॥ शंकर उवाच ॥ गोपति वर्ग सु १ वरन पहीला || बोले लां कर हित प्रवषीला ॥ तेहि मध्ये चित उतपति भयऊ ॥ चित