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________________ 74 रसिक अधिकारी है साइ ॥ २०३ ॥ मातु गुमाना गुविंद के पिता जु सालिग्राम ॥ श्री सर्वेश्वर सरन गुरु वाम विंदावन धाम ॥ २०४ ॥ इति श्री मद्राचा रसिक सर्वेश्वर वृंदावन चंद्र वर चरणारविंद मकरंद पानानंदित बलि रसिक गोविंद कविराजा विरचितां श्री रसिक गोविंद चंद्र चंद्रिका समाप्ताः संवत् १९९२ . कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे लिषन संपूर्ण ॥ Subject. - अलंकार बन । No. 6.-Rajanīti by Amrita-Substance-Country-made paper. Leaves-25. Size-6 x 3 in. Lines per pageExtent – 150 Ślokas. Appearance-old. Character 9. - Nāgari. Dato of composition – Samvat 1833. Date of Manuscript-Samrat 1855. Place of Deposit--Bhatta Śrimagana jī Upādhyāya Tulasī Chautarâ, Mathurā. APPENDIX II. Beginning.—श्री गणेशायनमः ॥ श्लोक राजनीति लिख्यते टीका सहित ॥ श्लेाक || महोत्साह स्थूल लक्ष्यः कृतज्ञो वृद्ध सेवकः ॥ विनीतः मत्व संपन्नः कुलीनः सत्यवाक् शुचिः ॥ १ ॥ भाषा ॥ छंद पदरी || उत्साह होइ जाको अनंत ॥ नित दीरघ वातनि लषहि संत ॥ लघु वातनि ऊपर नाहि दृष्टि ॥ सुष लदैं जासु सर्व सृष्टि || जानै पराए कृतहि नित्त । वय वृद्ध ज्ञान वृद्धनि मैं चित्त ॥ सिच्छा विनेय संयुक्त हाइ ॥ ? दुहं कुरुनि जासु ऊचै निहारि ॥ ग्रह बात कहै सांची विचारि ॥ ग्ररु होय सुद्ध चित धारि धीर ॥ पुनि होइ परम निर्मल शरीर ॥ श्लोक || प्रदीर्घ सूत्र स्मृति मान क्षुद्रो परपस्तथा ॥ धार्मिको व्यसनश्चैव प्राज्ञ शूरो रहस्यवित् ॥ २ ॥ भाषा ॥ नृप होइ न दीरघ सूत्र लोन ॥ ग्ररु यादि ताहि 'भूलै कहीं न || मनु देइ न पलता पै कदापि ॥ ग्ररु परुष वैन भाषै न थापि ॥ चित होइ धर्म अरु कृपा युक्त | पुनि वरनाश्रम की विधि संयुक्त ॥ ( अरु द्यूत स्त्री मृगयादि पान । तिन वसन हाइ कबहूं मुजान ) गंभीर अर्थ जानै निदान || यह शूर सदा भय रहित जान ॥ तात्पर्ज काज समुझे सदैव ॥ ग्रह गोप्यनि गे।पित करत थैव ॥ २ ॥ . . End. - श्लोक ॥ कुलानि जाती श्रेणीश्च गणान् जनपदानपि ॥ स्वधर्माच्च'लितान राजा विनोयंस्थापयेत्पथि ॥ ५२ ॥ सवैया ॥ जाति कुल गन देखनि के जु समूह स्वधर्महिं काऊ विसारै ॥ तातिन को महि महिपालत ही करि दंडहि मारग ते नहिं टारै ॥ जाकैौ जु धर्म सु साई करै असमंजस कर्म न काऊ विचारै ॥ हिम्मत सिंह महिंद्र की राज सदा कवि अमृत ऐसा निहारै ॥ ५ ॥ श्री ॥ ३ ॥ दादा || श्री हिमतेस महेंद्र के आयुस ते नृप धर्म ॥ रच्यैा प्रमृत कवि ताहि सब पढ़ों (सदा ) सुभ कर्म ॥ ५४ ॥ इति श्री मन्महाराजा महाराजाधिराज महेंद्र
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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