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________________ 72 APPENDIX II. जिनि ताको तू विसारग कीनो मोत वध भाई हैं। जिनि कीनों बूंद सां पयोधि जाहि सोधि दक्ष तासैन के विरोदवे अर्थ जिय लाइ हैं। कीजै न अनर्थ नेक बूझियें समर्थ है कै पायो विन अर्थ अंत अर्थ विन जाइ है ॥ ६११ ॥ कवि दक्षन कृत दक्षन विलास ग्रंथ समाप्तः॥ दाहा ॥ दक्षन कृत यह ग्रंथ है महा मुदेस सुभाइ । महमद फाजिल मीत लगि दक्षन लिष्या वनाइ ॥ ६१२॥ संवत ग्यारह सौ चालीस हिजरी ॥ दोहा ॥ ग्यारह सौ चालीस वरष हिजरी संवत पाहि । पातसाह दिल्ली तषत हा मुहम्मद साहि ॥ ६१३ ॥ दिल्ली मधिं दक्षन लिष्या अपने कर यह ग्रंथ । भटके वाट कवित्त रस रसिकन लावन पंथ ॥ ६१४॥ बचै जापानी मागि सा मौ न मिटावै कोइ । लिष्या रहै सहसन वरस लिषनहार दिन दाइ ॥ ६१५॥ जो कोई या ग्रंथ को पढ़ गुनी सग्यान । तासौ मुक्ति असीस को दक्षन मांगत दान ॥ ६१६॥ इति श्री दक्षन विलास ग्रंथ संपूर्ण समाप्तः संवत १८९४ Subject.-नायिका भेद । No.4. Hast amalaka Vedanta by Akhaya Rama. Substance-Country-made paper. Leaves-4. Size-11 x 61 inches. Lines per page-17. Extent-70 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State. . Beginning.-श्रीगणेशायनमः ॥ कवित्त मनहर ॥ को हो जू कहां ते पाये जाउगे कहां कू तुम सिष्य कोन के है। हमें नाम कहि दीजियै ॥ प्रीति के बढ़ायवें कै प्रगट बताय दीजै जाति कुल पाश्रम वरण भेद कीजियै ॥ सुर है। क नर है। क नाग है। क जक्ष हैक रक्ष है। पिसाच कदा पक्ष भाव भोजियै ॥ अषै राम दीसत है। वालक से सांची कहा छिमा उर गहा बात बूझत न षीजियै ॥१॥ सुरं नर नाग जक्ष जानों न प्रदेव हमें क्षत्री द्विजराज वैश्य सूद हून मानिये ॥ · ब्रह्मचारी गेही वानप्रस्त दंडी जते भिक्षु विचारि मन यो उर धारि न वषानियै ॥ सिद गंधरब सूत मागध विचारि मन जपी तपी जोगी मति भल उर मानिये ॥ हमैं निराधार नौ अधार सब जीवन का भूपन की भूप निजबोध रूप मानिये ॥२॥ ___End.-जैसे नीके मानिक अमोल गोल मोल केते भेद किये नाम रूपं पौर पहिचानिये ॥ गैसै संस्कार कियै वरण पाश्रम केते नेते नेते गावत यो वेदन वषानिय ॥ बुद्धि के विलास तैसैं चंद चंद्रिका अनेक चंचल चपल चाय जल हू मैं जानियै ॥ १४॥ जैसे वेद विद्या को वताये हैं अनेक भाव जामैं चित वृति नीके जो के मन मानिये ॥ जैसे दृढ़ बुद्धि को लगगवा होय ईसुरैसु सर्व काज माहि महाराज को पिछानिये ॥ बुद्धि हो को भेद है विवाद कहो कैसो सहा तत्व को स्वरूप एक प्रात्मा हो मानिये ॥ नित्य उपलब्ध है स्वरूप जो जगत
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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