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________________ 500 taar ककहियै सुषरूप है यातै देती हेती यतु मय यह जोत निसुष सैा सची रह से कैसे सची रहौ तहां श्री विठल विपुल कहै है कि विनोद करि कै बिहारी सौ यह रस रीति प्रगट करत यहा विठल तुम्हारा मन ताके विनोदनि की यह विहारी तासो प्रगट रमरीति जो यह जीती के अधीन कर मै ताहि करत अरु सची रहा कहा या जोति ही सौ सची रहा अर्थात मैसै हो जीतत रहा अंत के पद मै प्रिया की जय कहो या मे गर्व भरो जय सहचरि नें अपनी दासी मै अपने स्वरूप स्मरण रूप मंगल की हो सूचना कोनी सा श्री हरिदासी चरि चंद्रिका में कही है कि बर विहार तिय की जय जो है रूप धरें जय सहचर से है इत्यादि इति चत्वारिंशत्तमः प्रतिविंव प्रकाशः ४० APPENDIX III. Subject . - स्वामी विट्ठल विपुल जी के ज्ञान सम्वन्धी ४० पदों की टीका प्रकटार्थ और अन्तरङ्ग । No. 109. Yukti. Substance-Country-made paper. Leaves—23. Size - 12 x 62 inches. Lines per page - 15. Extent-970 Ślokas Appearance — Old. Character— Nāgari. Date of Manuscript -- Samvat 1911 or A.D. 1854. Place of Deposit-Pt. Bāla Mukundaji Jōtishi, Sikandarābāda. Beginning.—श्री गणेशाय नमः । ॐ अथ युक्ति लिख्यते दृष्टांत कहें हैं जो एक पुरुष द्रव्य को इच्छा ककै घर्ते निकला बन म गया वन मैं एक पुरुष बैठा था बातें इन प्रार्थना करो कि हे प्रभो ऐसी कृपा करो कि मेrकों द्रव्य प्राप्त हावे उस पुरुष मैं उस्का एक कुदाल और एक खड़ दिया और पास एक मंदिर बताया और कहा कि इस मंदिर में जा तुझको द्रव्य प्राप्त होवेगा वह पुरुष उस्के अंदर गया देखता क्या है विचार स्त्रो उसमें खड़ी हैं उस्तै पुरुष ने पूछा कि तुम कौन है। किस्कुल को है। क्या नाम है स्त्रियां बोलीं हम स्त्रियां हैं ब्राह्मण के कुल की हैं जो नाम था सेा बताया फेर पुरुष ने पूछा कि रहती कहां हो एक ने कहा मैं अग्निशाला मैं रहती हुं दुसरो ने कहा मै द्वार मैं रहती हूं तीसरी नै कहा मैं धर्मशाला में रहती हूं चौथी ने कहा मैं पंतःपुर मैं रहती हूं यह कह कै स्त्रियां गुप्त हो गई और चार पुरुष निकस आये || End.—तब राजा रूपो गुरु संघात रूपी विषै बैठ करकै समाधान हुवे क्या कि संघात रूपी रथ विषै इंद्रोया रूपी घोड़े हैं और बुद्धी रूपी सारथी है और मन रूपी बागडोर है और विषय स्थानी मार्ग है तब गुरु रूपो राजा नै शब्द रूपी धनुष हाथ विषै लिया दशों उपनिषद रूपो चिल्ला चढाया बिचार रूपी वाण और युक्ति रूपो भाल है जिस विषै तत्वज्ञान रूपी बल लगाय करकै बांग मारा हिरणी रूपी व्यषषसायात्मि (व्यवसायात्मिक) बुद्धि की वाण- मारनें स्थानी
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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