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________________ APPENDIX III. 497 ___End.-श्री गुसांई जी की बेठक ॥ १॥ श्री गिरिधर जी को बेठक ॥२॥ श्री हरिगय जो की बेठक ॥३॥ श्री गोकुल नाथ जो को बेठक ॥४॥ श्री प्राचार्य जी महाप्रभून को बेठक ॥५॥श्रो गोबर्द्धन नाथ जी सदा सहाय ॥ श्री गोकुलनाथ जी सदा सहाय ॥ श्री मदनमोहन जी सदा सहाय ॥ श्री बिटुलनाथ जी सदा सहाय ॥ श्री द्वारिका नाथ जी सदा सहाय ॥ श्री नवनीत प्रिया जी सदा सहाय ॥ श्री वालकृषण जो सदा सहाय ॥ श्री मथुरेश जी सदा सहाय ॥ श्री गोकन चंद्रमा जी सदा सहाय ॥ इति श्री चरित्र संपूर्णम् ॥ Subject.-श्री वल्लभाचार्य जो की ८४ बैठकों के चरित्र वर्णन । ___No. 106. Vidvajjana Bodhaka. Substance-Country. made paper. Leaves --266. Size-10% x 8 inches. Lines . per page-- 11. Extent-7,448 Slokas. Appearance-Old. Character -- Nāyari. Place of Doposit-Saraswati Bhandlāra Badli, Jaina Mandira Panchayati, Khurja. Beginning.-ॐ नमः। सिद्धेभ्यः ॥ अथानंतर विद्वजन बोधक के विष ज्ञानोद्योतक नामा द्वितीय कांड लिखेये है ॥ श्लोक ॥ श्री मद्वीर जीनं नत्वा ज्ञानानंदास्पदं गुरं ॥ सम्यग्ज्ञानस्य वक्षेहं नामादिक चतुष्टयम् ॥ २ ॥ अर्थ ॥ केवल ज्ञान स्वभाव पानंद का स्थान पर तीन लोक का जीवांनै हितोपदेसी गुरु ॥ अर अनंत च तुष्टयादि तो अंतरंग पर समवत्सर गादि वाह्य लक्ष्मीवान महावीर नामा अंतम तीथंकर कर्म रूप वरी का जपन सीन जो है ताहि नमस्कार करि सम्यग्ज्ञान का नाम अर आदि शब्द ते स्वरूप संख्या ॥ परस्पर व्यत्ति करे मति ये नान्य त्वं नक्षते तदनक्षणं ॥ अर्थ ॥ परस्पर मिलि ता संता जा करि अन्य पण लग्विये मा लक्षण है ॥ भावार्थ ॥ अनेक पदार्थ परस्पर मिलि रहे होय तहां जा विषय इनि च्यारनि कां समुदाय जो है ताहि में कहा ॥ End.-भावार्थ ॥ असे छत्र आदि अप्ट प्राति प्रतिहार्य करि संयुक्त है। बहुरि भव्य जननि करि म्तवन वंदन पूजन आदि के योग्य अहं प्रतिमा अनादि निधन एक सौ आठ संख्या प्रमाण है ॥ अर विशिष्ट गुणवाननि कर वर्णित है गुण जिनके ॥ अर एक सौ आठ पाठ कलश झारी प्रादि उपकरण रूप है परि. वार जिनकै ॥ पर वर्णनातीत है विभा जिनकै ॥ असे जिन धर्म की कहा मानो मूर्ति ही विराजमान है ॥१॥ चौपई ॥ यावत जिन मंदिर तिहु लोक ॥ तावत तिन प्रति मन वच धोक ॥ करत लहत भवि स्वर्ग निवास ॥ लिष्यो यथावत बरनन तास ॥ १ ॥ इति श्री मजिन वचन प्रकाशक श्रावक संग्रहीत विद्वजन बोध के ज्ञानोद्योतक नाम्ने द्वितीय कांडे अकृत्रिम जिन जिन मंदिर वरणनो नाम
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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