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बताय || श्री हरिदास चरन सेये विना बहुत गए सिरनाय ॥ ६५२ || हीरन की वोरी नहीं नही हसन की पांत ॥ सिंघन केलहि यो सुने नही साधन फिरत जमांत ॥ यहां लो || ६५२ ॥ साषी सिद्धान्त की और चालीस रस की सब ॥ ६९२ ॥ भई तिनमें सोलह तो बाबा माधोदास जी की कृत निश्चय हें ॥ १४० ॥ १४१ १९८ ॥ २६५ ॥ ३५५ ॥ ३५६ ॥ २५७ ॥ ३५८ ॥ ३८२ ॥ ५२२ || ५२३ || ५८४ ॥ ६३० ॥ और तीनों अंत की बाकी रहो ॥ ६७६ ॥ ते महाराज के श्री मुष कों हैं ॥ इति श्री टीका सावो श्री गुरुदेव विहारिना दास जी की संपूर्णम् समाप्तम् ॥ शुभ संवत १९५३ ॥ श्री
APPENDIX III.
Subject. — टीका - सापो ( ज्ञान भक्ति आदि की ) विहारिणा दाम जी की । पुस्तक खंडित है ।
Utthapana
No. 102. Pachisi. Substance-Countrymade paper. Leaves - 14. Size - 82 x 5 inches. Lines per page-14. Extent-600 Ślōkas. Appearance-Old. Character—Nāgari. Date of Manuscript - Samvat 1897 or A. D. 1840. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State.
Beginning.—श्री प्रमोद विहारी विजयतेतर ॥ कवित्त ॥ घटिका द्वै निशा अवशेष जानि यूथ यूथ सजि कै शृङ्गार प्राई नागरो नवानो है ॥ प्रिया मनभावन जगावन को आतुर हैं द्वादस सहस्र राजकन्या रसभीनी है ॥ कोडा रति कुंज को सुषंगन में रंग भरी चुटकी बजायें मंद प्रति हो प्रवीनो हैं । गान कला चातुरी गंधर्व कन्या चन्द्र मुखी सप्त स्वर जोल को अलापे मृदु कोनी है ॥ १ ॥ नृत्य करै विद्यावर कन्या अग्र गन्यां मंजु तालै देति धन्या सिद्ध कन्या मन भाई है | मंद मधुर वीना मृदंग आदि जंत्रन को किन्नरो बजावै कल सुंदरा सुहाई है | अस्तुति करे पुण्यां सूत बंदी जन कन्या जो ल्यांई मधुपर्क गोप कन्यां मनभाई है | नृत्य वाद गान को अवाज सुनि कानन में प्रीतम सुजान जू ने जानकी जगाई है ॥ २ ॥ तीजे जाम गत होत रंग महला में आइ मषी मब सैाज लै मधुर रुचि भेरें तान वीना सुर सीना गावै नागरी प्रवोना आलो देहि कर तालो कई प्यारो पोउ प्रान जान || पेटक की बार हरि दंपति उघारौ पटु रुष जान चारु सोला तकिया सम्हा चांन ॥ रंग रस मातेन प्रघाते बलचाते उठे विमल विमल मरजू जन कराया पांन ॥ १ ॥ End. - विनय निहारै बलि जाइ कर जारै प्रेम प्रीत रस बोरै रूप छवि छकि जा रही ॥ गावै वर बानी नाच उठे अकुलानी प्रिया प्रीतम सिहानी गत तानी ताल तारी ॥ तन मन वारे पट भूषन बिसारै प्रान जीवन निहारै हाव भाव
· कर भारही || जनक लड़ैती लाल बदन मयंक लषि सरद चारो सिया नागरी
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