SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 489 अनंत सुख भयो । और मनुष्य मृगया गए कुं पंछी पता चित्र लिखें पूतरे से करि हैं । हे मखी ठाकुर केसे हैं । हठोला मत्त मत्त महा गजराज होय । तेसे अटक चलते हे ॥ APPENDIX III. End. -- श्लेाक ॥ प्रयं मनोरथोत्पन्नं भविता नैव पूरकः ॥ नान्य श्री गोकुलाधीशांत जाता प्यना मां विनां ॥ ३१ ॥ याका अर्थ | यह उपर के मनोरथ सां व्रजभक्त बिना और कैं उत्पन्न नही होत । और याके पूर्ण कर्त्ता श्री गोकुलाधीश far और कोई नहीं । और या भाव को ज्ञाता श्री गुमाई जी कहते हैं । हम बिना दूसर कोई नहीं । वह अवधि हाय चुकी ॥ ३१ ॥ प्रवक्ता धनिक पुष्टिमार्ग जीवन मैं जो काई या भाव को जानेगा ॥ सा श्री गुसांई जी की कृपा तं जानेगा । एतन मार्गीय को पुरुषार्थ पही है जो ॥ सर्वात्मा भाव से श्री गुसांई जी और उनके सर्वस्व जो श्री आचार्य महाप्रभु से उनके सर्वस्व जो ब्रजरत्ना ग्ररु उनके सर्वस्व जेा व्रजाधिपति । यह चारि पदारथ की अनन्य भाव से अपना सर्वस्व करि जानें। ग्रह यह ग्रंथ के भाव को सिद्धांत है ॥ ३४ ॥ इति श्री भाषा गुप्त रस श्लोकार्थ संपूर्ण ॥ Subject. - बिटुलेश्वर विरचित शृंगार रस मंडन का भाषानुवाद | श्री कृष्ण का गोपियों के संग विहार करना तथा राधिका जी का विरह वर्णन । पृ० १ - १२ श्री राधिका की विरह दशा । पृ० १३ - २० श्री राधाकृष्ण समागम के लिये दूतिका का श्री राधिका जी के पास जाना | पृ० २० - २८ मानवती राधिका और दूतिका का संवाद । पृ० २८ मानिनो राधिका का मान परित्याग कर श्रोकरण से मिलना । ( पृ० ३१-३३ नष्ट हो गये हैं) पृ० ३४–३९ राधाकृष्ण का प्रेमालाप तथा विहार वर्णन, राधिका जी का सुंदरी वेश में श्रीकृष्ण का शृंगार करना, कृरण को गोनी वेश में देख श्री राधिका का विमोहित हो जाना तथा श्री राधाकृष्ण का रास वर्णन । पृ० ३९ - ४३ स्वामिन्यष्टक की भाषा । पृ० ४३ – ५० भाषा स्वामिनी स्तोत्र की । पृ० ५०-५० गुप्त रस श्लोकार्थ की भाषा । Note.- ग्रंथ, विट्ठलेश्वर विरचित शृंगार रस मंडन, स्वामिन्यष्टक, स्वामिनी स्तोत्र और गुप्त रस श्लोकार्थ का भाषानुवाद है । No. 96. Śri Sitā Rāmaji ké Charana Chinha. SubstanceCountry-made paper. Leaves-2. Size - 13 x 7 inches,
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy