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APPENDIX_III.
मनुहारि नवावै माथ ॥ १९६ ॥ वै ग्रह तो है प्रति मली ॥ ना तरु यह उहठारहि वलि || करि प्रसाद जिवावै तिन्ह कू ॥ आवै ग्रह विदा के उनकू ॥ १९७ ॥ सी जुगति प्रतिमा मना || सुनत वचन परिहरि अंगना ॥ धनि धनि देवन के पतिदेव || हम बना कहा जानै भेव ॥ १९८ ॥ पार्वती उवाच ॥ गिरिजा कहै तपोधन कथा ॥ जुगति विदा की कहीयै जथा || कौन दान से नर वहु करें ॥.
अपूर्ण
Subject.- शिव जी के व्रत करने की कथा और उसका विधान ।
No. 92. śikshāpatra. Substance — Country-mado paper. Leaves-31. Size - 11 x 6 inches. Lines per page - 13. Extcnt=841 Ślokas. Appearance — Old. Character—Nagari. Place of Deposit-Śrī Dēvaki Nandanacharya Pustkālaya, Kāmabana, Bharatapur.
Beginning.—श्री कृष्णाय नमः ॥ अथ श्री गोकुलनाथ जी कृत मिक्षा पत्र आरंभः ॥ एक x x में पुष्टिमार्गीय सिद्धांत श्री गोकुलनाथ जी श्री गुमाई से पूछे ॥ तव श्री गुसांई जो चाचा हरिवंश जो तथा नाग जी भट्ट यादि सब भगवदियन के अर्थ ॥ श्री गोकुलनाथ जी x x अपने पुष्टि मार्ग का सिद्धान्त || श्री गुसांई जी अपने श्री मुष से कहे ॥ मेा सुनि के चाचा हरिवंश जी ॥ तथा नाग जी भट आदि अंतर भगवदि या पुने मन में बहुत हि प्रस भएन पीछे श्री गोकुलनाथ जी आपनी वेठक में पधारे मा श्री गुसांई जी के वचनामृत का । अपुने मन में अनुभव करत हुते ॥ ता समे श्री गोकुलनाथ जी के सेवक कल्यान भट ने आई श्री गोकुलनाथ जी को दंडात कियों पर श्री गोकुल नाथ जी तो बोले नाही ॥
End.. . - ब्रह्म संबंध कराय भाव संबंध दृढ़ कर दिया सेो दान भयो है । परंतु पतिव्रता धर्म में चले तो पति प्रसन्न होई तम हो वैष्णव साक्षात श्री पूर्ण पुरुषोत्तम को अपने पति जानि ॥ ईनहि की सेवा स्मरण तन मन धन समर्पण करे तो प्रभु प्रसन्न होई जाई ॥ या प्रकार सा कृपा कर के श्री गोकुलनाथ जो कल्याण भट से कहे हैं । पाछे यह आज्ञा दिये जो यह पुष्टी मार्ग का सिद्धान्त काहु के आगे मत कहिये । केवल अनन्य भगवदीय होय तिन से कहियो ॥ इति श्री गोकुलनाथ जी कृत शिक्षा पत्र प्रसंगे चोवीस ॥ २४ ॥ शुभं भवतु | कल्याणमस्तु ॥ श्री कृष्णायनमः ॥ ग्रंथ संख्या : ८४१
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Subject.—श्रो गोस्वामी गोकुलनाथ जी की शिक्षा - पुष्टिमार्गीय वैष्णवों
के प्रति ।
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