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________________ 483 Beginning.- श्री कृष्णायनमः ॥ अथ श्री हरिशंइ जो कृत सिक्षा पत्र भाषा में लिख्यते ॥ अथ श्री हरिराय जी आज्ञा करत है | श्री कृष्णचंद्र अपने इष्टदेव हैं ॥ सेा पुष्टि मारगीय ज x वनक् आनंद देवे कू प्रगट भए हैं ॥ तामे पुष्टि मारगोय जीवन कू संसार के ग्रानंद में बूड़ि न रहनों ॥ संसार को आनंद तो विसे ॥ सेाविस तुल्य हे ॥ सेा यासू तो जनम मरन को दुःख होत हैं | और श्री कृष्णचंद्र प्रभून कों दीया जो आनंद ॥ सेा नित्य लीला विखें प्रवेस करावत हें ॥ तार्ते श्री कृष्ण के साक्षात दर्सन के उपाय विखें पुष्टि मारगीय के सदा रहने | और जहां ताई भगवान को दरसन साक्षात न होइ ॥ तहां तांई श्री प्रभून को साक्षात दरसन न भयेा । APPENDIX III. End.—श्रो प्रभू दयाल हैं | अपने भक्तन की चिंता करें ॥ तव यह जीव वृथा चिंता करे तो मूरख हो हे ॥ तेसे श्री आचार्य जी के सेवकन को मेरो सिक्षा विखे रहना ॥ ताते प्रभू सर्व कार्य सिद्ध करेंगे ॥ सर्व कल्यान ही करेंगे | उनही के भरोसे रहनों | यह सिद्धान्त है || सर्वथा जानाहोगे ॥ ४१ ॥ इति श्री हरिराय जी विरचित तं चत्वारीस सिक्षा पत्र ताकी भाषा में संपूर्ण ॥ मिती श्रावण कृष्ण पषे १४ चौदस बुधवारे श्री संवत् १९१३ का । श्री हरिराय जां कृत चौरासी शिक्षा पत्र का भाषानुवाद । ज्ञान और उपदेश । Subject. – पुष्टिमार्गीय ज्ञान और उपदेश । हरिराय रचित शिक्षा पत्र का भाषानुवाद | No. 89. śri Vachanāmrita and Vaithaka Varta. Sube stance-Country-made paper. Leaves-309. Size-62 × 6 inchos. Liues per payo - 12. Extout – 2,318 Slokas. Appearance — Old. Character -Nâzari. Date of Manuscript Samvat 1911_or A. D. 1854. Place of Deposit - Śrī Devaki Nandanächārya Pustakālaya, Kāmahana, Bharatapur. Beginning. x चार करत हे परंतु प्राप्त नहीं || एसेा आप को अनिर्वचनीय स्वरूप हे । फेर कह्यो जो पीत धजा की कहा कारन है | और श्री नाथ जी के मस्तक उपर विराजत है । ताकेा कहा कारन है । तापे आप आग्या किनी ॥ तुम भाखा ॥ ग्रंथ में तथा नायका भेद में । समजत है। तब मे ने कही ॥ कछू तेा जानु हूं ॥ तब कही || गुरु ॥ मान के से छूटे ॥ सातों ग्रंथन में कहि हे से पावन पड़े ते गुरु समान होय से मिटे ॥ सेा इहां गुरु समान का भाव हे ॥ तासा श्री मस्तक ऊपर विराजत है | गुरु मान छुड़ायबे को ज्ञापन करतु हे || पर पीत ध्वजा हे ताको एसे है ॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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