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________________ 482 APPENDIX III. अगिनत धन पावै ताकै छिपावै असे या सिद्धान्त के राषै काटि कोटि मंत्र या सिद्धांत के ऊपर न्यौछावरि करनै जोग्य हैं जो समझै सा निश्चै पर्म पद जाकों कोई न पहुंचै ताको पावै नित्य बस्तु दरपन सो दिषराई है जो अनंत शास्त्र वानी प्राचार जनि को भली भांत सुने पढ़ ताऊ जैसी निसंदेहता को निरूपन न पावै एक श्री स्वामो जू की उदारता सां महा कठन वस्त हाथ परी मब उपामिकन लां बीनती है याको अपने हदे मैं राषनों। श्री कृष्ण । चंद ने कहगै जैसौ.मो की ग्यानी प्यारा है भार नाहीं फेरि कहयो भगतन के पाछे फिरत हों चरन रज के नियत तातै पवत्र हात है। दोनों वचन में भक्त की अधिकता प्रगट है भगतनि मैं उद्धव सां कही तू मोको जैसा प्यारा है लछमो जू नांही वलदेव जू नाही मेरी सरीर नाही तू मेरी हुदै है यातै पर भक्त को सुरूप नांही सो उद्धव वांछा करें है वृदावन की गुलमलता होइ रज वृदावन को सीस पर परै End.-अनल पछ के चैट वा गिर ते किया विचार श्रुर्ति वांधि ऊंचे चहौ जाइ मिल्यो परवार वस्त को स्वरूप मल्यागर समस्त वन वाको पवन हैं चंदन हो जाइ वाके कछू इछा नाहों वांम और अंड मुगंध न होहिं मत संग कुपात्र को असर न करै ॥ भक्ति के लाष लछन हैं तिन मैं ते सूकम पैसठ लिये तिन में तीन सूकम लिये जोव दया हरि को निरंतर भजन साधन से भाव इति भाषा सिद्धांत संपूर्ण ॥ श्री श्री श्री ॥ दक्षालोद्भव चातुर्वेदि शर्मा राधा चंदस्य इदं पुस्तकं । Subject.-ज्ञान । पृ०१-तक भूमिका, ४-२५ तक भक्ति का स्वरूप-वृन्दावन महिमा । २५-४३ तक भक्ति और साधु के लक्षण-वैराग्यप्रसाद और कंठी को महिमा ॥ ४३-४. शरीर को अवस्थायें-सन्न्यास, साधन और मानसिक धर्म-पृ. ४८-६४ भक्ति निरूपण-जैसो भावना होगो वैसी ही भक्ति भी होगी-पृ०६४-९२ सेवा और आत्मा को प्रसन्नता-भिन्न २ दृष्टान्तों से प्रात्मज्ञान को प्राप्ति वर्णन-पृ० ९२-१०४ तटस्थ और स्वरूप लक्षण ॥ पृ० १०४-११२ वृन्दावन की महिमा-पृ० ११२-१३५ प्राचार्यों के स्वरूप, सत्य भाक, ईश्वराज्ञापालन, नित्य स्वरूप, प्रात्मशासन, आदि का वर्णन दृष्टान्तों के साथ, १३५-१३७ अंत No. 88. Siksha Patra. Substance-Country-made paper. Leaves-43. Size-11 x 6 inches. Lines per page -12. Extent-1,161 Slokas. Appearance-Old. Character -Nagari. Place of Deposit-Śrī Dēvaki Nandanāchārya Pustakālaya, Kamabana, Bharatapur.
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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