________________
480
APPENDIX III.
-
End.-अन्त के पृष्ट नष्ट हो गये हैं। Subject.-ज्योतिष ।
Note.-गध । पुस्तक की प्रति अपूर्ण है । अन्त के पृष्ट नष्ट हो गये हैं। पुस्तक संरक्षक का कहना है कि वहुत सी पुस्तके उनने गंगा में प्रवाहित कर दी हैं।
No. 86. Satta Nisohaya. Substance-Country-made paper. Leaves-46. Size-10 x 5 inches. Lines per page-8. Extent-805 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1948 or A. D. 1891. Place of Deposit-Saraswati Bhan līra, Jizina Mandira, Khurjā. ___Beginning:-ॐ नमः सिद्धभयः ॥ अथ अरहंत देव का निश्चय प्राप का ज्ञान में होने का उपाय लिखिए है ॥ तहां यह जीव अनादि ते मिथ्या दर्शन अज्ञान प्रचारित्र भाव करि प्रवर्त तो संतो चतुर्गति संसार विर्षे परिभ्रमण करै है। तहां कर्म का उदय करि उपजो ज्यों ॥ असमान जाति द्रव्य पर्याय तिस विर्षे अहं बुद्धि धारि उन्मत्त हुवा ॥ विषय कषायादि कार्य निरूप प्रवत्त है ॥ तहां अनादि ते तो घना काल नित्यनि गादि मैं हो व्यतीत मया ॥ वा पृथ्वी आदि पर्यायनि मैं वाइतर नि गोद मैं यतीत भया ॥ तहां नित्य निगाद में स्थापिक में पीछे पंच स्थावरनि मैं उत्कृष्ट रहने का काल असंख्यात पुद्गल परावर्तन प्रमाण है ॥ तहां तो एक स्पर्शन इंद्रिय काही किंचित ज्ञान पाईए है ॥ सा उन पर्यायनि मैं ज्यों दुष होय है सा तो धरणो गम्य है ॥ वाके वली जाने है पर कोई प्रकार का कर्म क्षयोपशम करि वा त्रासादि प्रकृतिनि का उदय करिवंदो तेंद्री चैांद्री पंचेदो अलैना वालाविध पर्याप्त इनि पर्यायनि को पावै तो तिनि पर्यायनि मैं विशेष रूप दुख हो को सामग्री पाईए है। पर तहां भो ज्ञान को मंदता ही है ।
___End.-पर आप सव का चित्त रंजायमान करने के अर्थि मंदक पाई शीतल हुवा ही रहै है ॥ अर वचनालाप रि वाकी कही वाधा का खंडन करे है॥ते जैनाभासी महा मिथ्या दृष्टी है। जात जैतो होसी सा अपने कर्णनि विषै जिन मत को रकम को वाया का वचन कैसे सहै ॥ साई श्लोक वार्तिक जी मैं कहा है ॥ पतोति विलापेाहिंस्या ॥ द्वादिभिर्नक्ष मंतेन ॥ पुनः प्रतीत्या श्रयणं x x x ॥ या का अर्थ ॥ जो स्याद्वादो है तिन करि अपनी प्रतीति ज्यो श्रवा ताक ॥ इति श्री सत्ता निश्चय संपूर्ण ॥ संवत् १९४८ ॥ कोर्तिक कृष्ण २ चंद्र। लिखितं ॥ .
Subject.-जैन धर्म ।