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APPENDIX III.
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भी चलना उचित है क्योंकि उस मार्ग से चलेगा तो उसका कल्याण होगा । भगवतगीता में भी कहा है । जो आचरण श्रेष्ठ पुरुष करते आए हैं सा और सव लोगों की भो करना उचित है उसी का प्रमाण भी लोगों को मानना चाहिये । और श्रुति स्मृति का कहा हुआ आचरण करना चाहिये ||
Subject. – सं० १९२६ कार्तिक सुदि १२ का शास्त्रार्थ स्वामी दयानन्द सरस्वती और काशी के पण्डितों के वोच ।
No. 81. Shat Pañchāsika. Tika Sahita. Substance— *Country-mmade paper. Leaves – 15. Size—102 × 6 inches. Linos per page-12 Extent-392 Ślōkas. Appearance-Old. . Character —Nāgari. Date of Composition – Samvat 1842 or A. D. 1785. Date of Manuscript-Samvat 1896 or A. D. 1839. Place of Deposit - Chandra Sēua, Pujāri, Khurja, Bulanda - sahar.
Beginning. - श्री गणेशाय नमः अथ पट पंचासका टोकां सहत लिख्यते मूल प्रणिपत्य रविं मुर्दुनावाराहमिहिरात्मजे । सद्य सा प्रश्ने ? कृतार्थ गहना परार्थ मुदिस्य प्रथुयशा १ टीका वाराह मिह (र) का पुत्र प्रथुजसा तिन वह (व) १ प्रिश्न विद्या क करी x x x प्रवासी २ टीका । प्रछा लग्न विषै जो शुभ ग्रहास्थित हाय किंवा इष्ट होय तो प्रस्थान प्रस्थित कहिये जो पापग्रह स्थित
हि किंवा इष्ट होय तो स्थान च्युत कहनी जो चौथे स्थान शुभग्रह होय तैौ वृद्धि कहियै कार्य द्रव्य को जा लग्न ते दशमै शुभ ग्रह होहि त विदेसी की कहना लग्न तै सातवै भवन ते विदेसो की निवृत कहणी विचार देषना जो चौथे भवन स्वामी युक्त ग्रह होहि अथवा शुभ ग्रह युक्त होय तो इष्ट हाय तौ प्रवासी घर प्रविष्ट होय सी असि ॥ २ मूल । यो यो भाव स्वामि X जन्मता वा ३ टोका जा प्रकास मै मूर्त्त लग्न का स्वामी मूर्त्ति होय किंवा सैाम्य ग्रह होय किंवा काई देषत होय ता प्रक के कार्य की वृद्धि कहनी जो मूर्त्त पापग्रह होय अरु पर घर होय किंवा पापग्रह देषता होय तौ कार्य की हानि कहनी लग्न ते द्वादश भवन के स्वामी युक्त दृष्ट उब नीच वल विचारना देषना ३
X
x
End. - जो लग्न का स्वामी नीच होय तो ग्रस्त लग्न गत होय तो वीनष्ट वस्तु कनो ग्रह छीद्र सेती कहनी ग्रंस कहु ते ग्रह द्रव्य जानना प्रछा समै जिसका doere होय तैसा चोर कहना प लग्न रात्रि वत्नी १२३४२१० ॥ हा हता रात्र चुराई कहिनो और जो प लग्न दिन वली ५६७८१११२ || होय तो दिन चुराई कहिये जो ए लग्न होय तो १५९ ॥ पुर्ब गई कहिनी २६१० दछिन ३७११ ॥ पश्चम
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