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APPENDIX III.
१९७-मंग वर्णन।
२९३-गुणग्राहकता । २०५-प्रोति वर्णन।
२९६-बुद्धि स्त्रियों की। २२७-मांगना।
३०१-कलियुग। २२०-दोष, ब्रह्मा को।
३०९-फुटकर। २३३-जूग्रा (द्यूतक्रीड़ा)।
३८९-दोहे, राजनीति के। २३५-जीवन, विना “पानो" के वृथा है। ४०५-सत्संग । २४५-कर्म देष।
४१२-करेला। २६१-मृत्यु।
४१५-विद्या। २६५ -कायस्थ जाति के गुणदोष का ४२१-विवाह विधि । निरूपण ।
४३७-धंधा। २६९-अदालत पंचायत ।
४४३-माता पिता के लक्षण । २७३-धैर्य ।
४४७-श्लोक-(चुने हुए)। २७७-द्रव्य।
५१०-गजायों के लक्षणादि । २८६-लजा।
५२०-जुवित्नी वर्णन । २२.१-मौनावलम्बन ।
No. 76. Saigrahasāra. Substance -British paper. Leavos -166. Size-73 x 5 inches. Lines per page14. Extent-1,804 Slokas. Appearance-New. CharacterNagari. Date of Manuscript-Sainvat 19:34 or A. D. 1877. Place of Deposit-Singoi Krishna Siiliaji, Ruris Gūvardhana.
Baginning.---श्री रामचंद्रायनमः ॥ अथ रस वित्नास नित्यते ॥दोहा॥ एक ब्रह्म जा आदि है प्रोतमता को पास । जातें शिव अरु शक्ति का सहज भयो परकास ॥१॥ तिनकूसोस नवाय के बदत हो कर जारि ॥ निशि प्रज्ञान हति के करूं ज्ञान भरोसो भार ॥२॥ गरिनन्द प्रानंद हित प्रथर्माह ताहि मनाय ॥ पाछे मनसा ध्यान धरि लागू गुरु के पांय ॥ ३॥ सिर अरु सक्ति हरि राधिका ता का कहूं विलास ॥ जाके मुनत अनंद चित होये बढ़त रसहास ॥४॥ पीतांवर नंदलाल मुत वामु तामु चंदवार ॥ रस विलास पाथी रची करि थोरिक विस्तार ॥ पाछे काछे काछनी सावल नयन विसाल । पाताम्वर वनमाल उर इहि विद्धि है नंदलाल ॥ बेनु वजावत प्रेम सां मन में अधिक अनंद ॥ गाय चरावत प्रोत सू श्री वृन्दावन चंद ॥ ७॥
End.-प्रात भयो जव पिय कहो हम जावेंगे आज । गमन पोय को श्रवण सुनि विसर गई सब काज ॥ १६॥ फट पकरि तिय पोय को कहै युगल