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________________ नियरायंगी || दश दिशान से वयारिन को बंद कीजै उड़ने न पावै खांड़ कैसे उड़ि जायगी ॥ चोटिन को मारि डारो माछिन प्रवार फारी चींटो दई मारि क्या हमारी ग्वांड खायेंगो ॥ ४ ॥ १- सूम । २३ – वेश्या । ३४ - संताप । APPENDIX III. End. - दानी काऊ नाहीं न गुलाबदानो पीकदानो गोंददानी धनी शोभा नहीं मां लहे हैं | मानत गुणी को न गुण हीन में प्रगट देखो याते गुणी जन मन सावधानी गहे हैं । हयदान गजदान हेमदान भूमिदान किशुन विहारी सुपुरान मैं कहे हैं | अब तो कनमदान जुजदा । जापदान खानदान पानदान कहिले का रहे हैं ॥ ४६ ॥ पारि (कं) केवार देत लोगन को गारि देत साबुन को दोष देत प्रीति न चहत है | मांगने में ज्वाव देत बात कहे राय देत लेत देत भाजि देत ऐसे निबहत है || बागेह को बंद देत बाहन का गाठि देत पर्दन को काछ देत काम में रहत हैं । पतेह पे लोग कहें लाला कछू नाहिं देत लाला जू तो आठी जाम देत ही रहन हैं ॥ ४७ ॥ संवया समस्या पर || जानि महासुखदानि भवानि कहे गुणखानि हे वरदानी । नीति महा विलवानी लखानि सदा मुरंग छानि हदै पहिचानी ॥ है सत ज्ञानि महा शुभ थानि यही महरानि अनूप बखानी ॥ दानन पूरि दियो सब ही चिरजीवा (सदा) विकोरिया रानो ॥ १ ॥ म्वामिन की यश पाती सुने हुलसाती है छाती मनातो सुवानी । वाति अघाती सबै शुभ भांति सा हर्षात सुकीर्त्ति बखानी ॥ ताल सुनाती महा मुखपाती यही यश गाती सदा सुख भानी ॥ दीनन मुक्ख दिया तुमही चिरजीवा सदा विक्टोरिया रानी ॥ २ ॥ Subject . - निम्नलिखित विषयों पर भिन्न भिन्न कवियों के कवित्तादि का संग्रहः ३९- मान । ४२ - पुरुषों की हंसी । ५१ - शील । ६५ – ईश कृपा । ७२ - सज्जनता । ७८ - उपाय धन उपार्जन करने के । ८२ - बात । ८९ – दुष्टता वर्णन । ११३ - 'पुत्र' वर्णन । १२७-हिंद के अमीर | १३१ - वर लक्षण । १३२ - दुलहिन - लक्षण । १३४ – स्त्री । १५३ – वैद्य । १५७ – ब्राह्मण । १६५ - पुरुषों के कर्म । १६९ - श्रोता लक्षण । १७१ - क्षत्री १७२ - वैश्य "" 19 471 19 १७७ - शूद १८६ . - कवि १८५ - पक्षी विन पर है । १८९ - आशीर्वाद । ""
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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