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APPENDIX III.
दोखा न दीयते जो प्रति मौ देखा सोइ लिखा मीतो भादों वदी तेरस संवत् १८५९ दसखत लाला खेमराज कायस्थ मुकाम फरुखाबाद लिषी गंगाघाट ॥ Subject.—भक्ति के छंद और कलियुग के मनुष्यों के क्रिया कर्म यादि . का वर्णन ।
No. 69. śabdālaükāra. Substance – Country-made paper. Leaves-12. Size-7 x 4 inches. Lines per page-11. Extent-260 Ślōkas. Appearance-Old. Character -Nāgari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhyā.
Beginning.—श्री गणेशायनमः दोहा ॥ विघनहरन तुम है। सदा गनपति होहु सहाई विनती कर जोरे करौं दोजे ग्रंथ बनाई १ जिन्ह कीन्ही परपञ्च सब अपनी इच्छा पाई ताकी हैं। वन्दन करौं हाथ जारि शिर नाई २ करुना करि पोषन सदा सकन सृष्टि के प्रान वैसे इश्वर को हिये रहे रैनि दिन ध्यान ३ मेरे मन में तुम रहा से क्यों कहि जाइ ताते यह मन प्रापु सेा लीजे सेवक लाई ४ राग मन मिलो श्याम शोभयो नग होरे। लाल यह अचरज उज्जन भयो तज्या मइलि ततकाल ५ अथ चतुर नायक नाम यक नागे सु हितु करै सेा मनुकुल वषानि बहुनारो से प्रीति समताको दक्षिण जान ।
End.—यमकः यमक शब्द को फिरि श्रवन अर्थ युनदेश जानि शीतल चन्दन नहि अधिक अगिनि ते मान ३ त्रिविध वृत्यानुप्रासः प्रति प्र प्रवृति बहुवहु वृत्ति तोनि विधिमानि मधुर वचन जामै सवै उनागरिका जानि ४ दूजे परुषा करत सब जामे बहुत समाजु बिन सनास विन मधुरता कहत कोमला तामु ५ अधिकारी भारी घटा अरु कारन न्यारे ठाम और ठौर हो कीजिये और ठौर के कान ६ सुकुमारी वारो वयस प्यारी प्यारी वेश पिय परदेश अंदेश यह प्रावत नाहि संदेश ७ केrकिन चात्रिक भृंग कुन केको कटिन चकोर शोर सुने घरको हिरो काम करक प्रति जार ८ घन बरसै दामिनि यसै दस दिशि नीर नरंग दांनि हिये हुनाले अति सरसात अनंग ९ इति शब्दालंकार अलंकार सब अर्थ के कहे एक से पाठ करे प्रगट भाषा विषे देषि संस्कृत पाठ १० शब्द प्रकृत बहुत है वर पाठ षट विधि कहै जे है भाषा जाग ११
कविपति लोग पान
Subject. — संस्कृत शब्दालंकार के अनुसार एक सौ आठ अलंकृत शब्दों के अर्थ
No. 10. Saguna Vichāra. Substance- Country-made paper. Leaves--4. Size -9 × 1 inches. Linos per page-10.