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APPENDIX VII.
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गत अव ल न सुधि पाई ॥२॥ नाहैं कटति ये हिम ऋतु रतियां ॥३॥ साच शसिर कर देह दहतियां ॥४॥ बिरहि रूप कैसे कटेरी वसंता ॥५॥ विठुरन छुरी वियोगिन अंता ॥ ६॥ ग्रीषम मरन सरन हरिहर की ॥ ७॥ कब आवैगो घड़ी वुह झरको ॥ ८ ॥ कब सुनि हैं झांझन झझना ॥ ठाड़ें विदिस रौद्र विच कैनै लुकि गई रोक कहां कंजना ॥१॥ दाहा ॥ सुनि खंजन कहा कहत तू मनि बाल ये बोल ॥ विधि कर लेख न मिटत है, उन कर लिख्या अमान ॥२॥ जो लिखि दिया लत्नाट मैं, मटि मकै अस काइ ॥ जय और जोग वियोग पुनि, भोगादिक जे विगो ॥ ३ ॥ __End.-सवैया ॥ कछ षवरि नहीं जाने गेल कहां-जाने कहां है के वाको दगरी है ॥ प्राईवे को मुधि बुधि सव विसरी–विन जायें दीसे न वगरा है ॥ पावन ते गवन गवन नहि पावन-विन पावन विन मिटै न झगरौ है ॥ दगरी घगरी सव रगरी तजि, कृष्णा भजि नागर अगरौ है ॥ २२ ॥ गग मारठि ॥ अरी हम रतन जतन करि पायो-धनि महासागर है ॥ मच्छ कच्छ बाराह जा • नर हरि-बावन परशुराम कहि भवतरि-रामकृष्ण के रूपा ईश रतनागर है ॥ २३ ॥ वुद्ध शुद्ध भूपन कं भूपा-रटि कल्को धनि धन्य सरूपा-सूरज अगम जो धूपा चन्द ह ते आगर है ॥ भजि मन मुढ़ ये मंगल मूला, सब प्रकार है। तन मन शूना - कृष्णा ये अनुकूना रूप उजागर है ॥ २४ ॥ ___Subject.. - विविध राग रागनियों का संग्रह
No. 68. Rukmiņi Maugala. Suistance-Country-made paper. Leaves-72. Size-6x7 inches. Lines per page14. Appearance-Oli. Character-Hindi. Date of Com. position-Samvat 1859 or 1. D. 1802, Place of Deposit Pandit Maho Tirtu Prasidaji, village Kapathua, P. O. Karachanā, district Allāhābūd.
Beginning.-श्री गनससाएन्महः राम श्री भवानी माता सहाइ श्रो रुक्मिणो मंगल कथा लोखते ॥ चौपाई कहै परोछत सौ रोषा राइ, ऐह अक्षती मुक्षु कुंदशु नाइ पुनी वोचार कीन्हो मन माहो ॥ अब प्राद कनीजुग की छाही अवस अवस्वास बहुत भी हुई है ॥ खुरो बसुत सव के मन भै है ॥ तातं प्रव तजिऐ संसारा ॥ वन बसीकै मजोष करतारा | तब हर जु सो आयुसु लोन्हा ॥ उत्तर देसकी मनसा कोन्हा ॥
Lnd.-श्रो रुक्मिनो मंगल महा जानत है सब कोइ जो पीति दै गावै सुनै प्रेम भगतो वह हाइ इति श्री रुक्मिनी मंगल कथा समापती संपुरन मम