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नौमि सुत्रधर सुजन उर गिरा दारु तिथ कीन्ह || जन मानस वसिंहंसवत सं ( स ) य कम क्रम छोन्ह ॥ २ ॥ राकापति प्रति सरस मुख वसेा दोन उर वेतु ॥ तिमर ताप पटवार हरि भरा सुधारस हेतु ॥ ३ ॥ चित चकोर हग पालिये सुरति कमादनि पाष ॥ लगन यादि सक औषधी करो दुरासा कोक ॥ ४ ॥ पीत स्याम सरसिज सरस तुम्हें प्रनाम प्रमानि मन मधुकर मकरंद रस करौं जोह जित पानि ॥ ५ ॥
APPENDIX III.
End. - वर सुभ्र छटा छटको चटकी ॥ सुभ रूप अनूप अटा फटकी ॥ के भनकै मन विज्ज लसै || रवि मंडल मंडन हारनिसें ॥ अति केतु पताक ध्वजा फरकै ॥ नवनाकर में उर का करबै ॥ कनवारि दुवारि संवारि भला ॥ रस टारि सुन्यारि सु मुषित्नी ॥ वहु जाल झरोपनि माषनि मै | दमकै चमकै मनितेचिन में || तिन मध्य सु सघन महामनि सा ॥ रचि तामु चिता कथि तानन सेा ॥ जटितान वितान तने सुधरी || झलरै हुनरे मुक्ता विधुरो ॥ चहुं और सुकोर जरो जर ते ॥ लषि तेजु बने न बने कथिते ॥ वहुमूलसु भूमि रही थन से || केउ रंग लता जु भरा फल से ॥ कलि चित्र विचित्र बने सुघटे X अपूर्ण Subject.—श्री सोनाराम रहस्य और श्री युगल छवि की उपासना |
No. 64. Rümotsava by Brajes a. Substance—Countrymade paper. Leaves-16. Size-10 x6 inches. Lines per page-17. Extent —-1.000 Ślokas. Appearance — Old. Character—Nagari. Place of Deposit - The Public Library, Bharatapur.
Beginning.—श्री गणेशाय नमः छप्पय सकन मिद्धि गुण वृद्धि रिद्धि रमण प्रसिद्धि घर तिलक चंद शुभ छंद दंद दुग्ख हरि त्रिशूल कर रदन एक दायक विवेक भर मद भुलुंड वर गुंजन भवर मतंग अंग थन थदि श्रवनसर वरनत व्रजेस गरूएस विधि शुक सारद अमरेश नित आनंद कंद मंगल करन मादक असून प्रसन्न चित || २ || दोहा आसीर्वाद || गुरु गणेश गिरि गंग अज रामानुज सिय साह श्री जुत श्री बलवंत का पढ़त दाहिने हेाहु ॥ २ ॥ छप्पे | जयति सिद्धि नव निद्धि रिद्धि रघुवीर धीर धर गवरि गंग गिरिजा गिरोस भुव धरन सीस वर अमरि दिवाकर इंद्र चंद्र शुभ छंद अनंदित राम सारदा सची सरस्वती ई जगवंदित प्रलिकेस लेस ब्रजेस कवि सुमिरत सकल सुवेस हित श्री मन्नृप बलवंत कू पढ़त दाहिने हा नित ३
End.—ढाढी वर्नन अधिक अनंद सुन्या यानंद को कदंभ या गोवर्द्धन धाम हू ते आतुर सिधाया है। मंगित अनंत प्राय आगम हो छाय रहे सा तु X अपूर्ण ।
Subject.-उत्सव के कवित्तादि ।