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APPENDIX III.
समेत अपनी इच्छा से कमलनयन करुणायतन श्री अवध में प्रगट हो के रावणादि अनंत पावर जंतुवा के मुक्त करते भये ।
End. - यथा - नामी वाचकेन नाम्ना चाभिमुखो भवेत् ॥ तथा वीजात्मको मंत्रा मंत्रिणाभिमुखं भवेत् ॥ षडक्षर समा मंत्रा नान्यास्ति मुनिसत्तमः स्वर्णस्तेय. सुरापान गुरुतल्या युतानिच कोटि कोटि सहस्राणि ह्युय पापानि यान्यमि सर्वाण्यपि विनश्यति राम मंत्रान कीर्त्तनात् राम सौमित्रि सहितं जानकी प्राणवल्लभम् सच्चिद सुखमयं वन्दे कोशलानायकं हरिमिति श्री राम मंत्रार्थ संपूर्ण शुभमस्तु श्री श्री श्री ॥
. - राम नाम और रामचंद्र की महिमा |
Subject. -
No. 61. Rāma Mautrārtha. Substance --- Country-made paper. Leaves-25. Size-11 x 5 inches. Lines per page -13. Extent— 850 Ślokas. Appoarance —Old. Character —Nâgari._Date of Manuscript - Samvat 1929 or A. D. 1852 : Place of Deposit - Saraswati Bhandāra, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.श्रीमते रामानुजाय नमः श्री जानकीवल्लभो विजयतेतराम् सच्चिद्रूप गुणत्वरूप विभवेश्वय्यैकदिव्यं वपुर्नित्यानंद गुणानुभाव करुणा सौर्य शुद्धोदधिः त्रयंत प्रतिपाद्य वस्तु घटेन कर्त्ता स्वतंत्रः स्वतो जात्तश्चंड करान्वये विजयते श्री जानकोशविभुः ॥ २ ॥ टोका श्री जानकांश नान शोभा सहित जो श्री जानकी जो तिनके ईश नाम पति थे। श्री रामचंद्र जी विराजमान हैं कैसे हैं सत् चिद् रूप जो गुण सेा स्वरूप है जिनके और विभव और ऐश्वर्य के श्रेष्ट दिव्य स्वरूप है और नित्यानंद गुण और अनुभावना महिमा और करुणा और सुंदरता के अमृतमय समुंद्र है और वेदन के अंत नाम निश्चय प्रतिपाद्य जो भगवत्प्राप्ति ताके घटावने में स्वतंत्र कर्त्ता हैं और चंडकर जो सूर्य तिनके अन्वय नाम वेश में स्वेच्छा अवतार हैं और विभु नाम व्यापक हैं सामर्थ्य हैं ॥ १ ॥
End. - मूल ॥ प्रपन्नस्य देह संबंधानासयेवेति भावः ॥ इति श्री राम मन्त्रार्थ सम्पूर्णम् ॥ टोका ॥ एह सव प्रमाण करके प्रपन्न को देह संबंध नहीं है। एह इसका भावनाम सिद्धांत है एह श्री राम मन्त्रार्थ जो सेा संपूर्ण भया टिपन लिखते है । तदाधिग में ब्रह्म साक्षात्कारे उत्तर पूर्वाघयोर श्लेष विना शैौभवतस्व ॥ कुतः तपेार्विदुषि श्रुत्याव्ययदेशात् X x पूर्वोत्तर पापा संबंध इति सिद्धम् ॥ श्री सीतारामायनमोनमः ॥ श्री रामचंद्रायनमोनमः श्री रामभद्राय नमोनमः प्राषाढ मासे
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