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APPENDIX III.
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स्वरूप कृष्णदास को दिषायो ॥ और सिक्षा दोरे ॥ सा वह सूवा श्री प्राचार्य जि को सेवक एसा कृपापात्र भगवदीय परम भक्त भयो हतो। साताको वार्ता तहां तांई लिषिये वार्ता प्रथम ॥ इति श्री प्राचार्य जी महाप्रभू जी को सेवक एक सुवा भयो हतो ताकी वार्ता संपूर्ण ॥ यादृशं पुस्तकं दृष्टं तादृशं लिषितं मया ॥ यदि शुद्धमशुद्धमवा मम दोषो न विद्यते ॥ १.॥ दिवा करेण लिषिते ॥
Subject.-श्री पूर्णमासी और श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु के एक सेवक। शुक पक्षी को वार्ता ॥ पृ० १-५६. पूर्णमासी की वार्ता, ५६-८४ शुक की वार्ता। ___No. 58. Rama. Charitra Avatarnika. Substance-Country-made paper. Leavos-37. Size-6 x 4 inches. Lines per page-5. Extent-180 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State.
Beginning.-ॐ नमो भगवते जानकी वल्लभाय ॥ ६ ॥ जय जय रघुकुल तिलक साधु । जन मन सुख साजन ॥ कोशल भूपति सुता हृदयरंजन रस भाजन राम रमा रमणीय समर दशमुख पशुमोचन ॥ दशरथ नृप तप पुंज पुंडरीकायतलोचन ॥ कवि वालमीक वरनत विमल सुर धुनि साभित हैं सुजश ॥ जय जग अधोश अवधीश जय जय जय निज जन प्रेम वश ॥ दोहा ॥ नमो नमो कवि कल्पतरु श्रीयुत तामें रूप ॥ सर्व ज्ञान अधिवास कवि वालमीक कवि भूप ॥२॥ छन्द मुरलिया ॥ फुलिय प्रनंद पाय उर कानन रितुहि बसंत पागमन कीनें ॥ चढि चढि कवित कल्पतरु शाखा बहु उछाह संभ्रम लीने ॥ कवि कूजित राम नाम धरें सुर सकल जगत मंगल दीनें ॥ कवि वंदें हं बालमीक मुनि कोकिल कोमल कंठ रंग भीनं ॥ ३॥ ___End.-कियो लखन को त्याग महा प्रस्थान गमन पुनि ॥ इष्ट मित्र पुर लोक वानरति स्वर्ग लाभ शुनि ॥ यह अभ्युदय के जु कांड भूतरु भवष्य जहँ ॥ वोश शां सव सर्ग आपु भाषे मुनि जा मँह ॥ ६२॥ नव शत तीन सहस्र साठि अगरे स लोक तह ॥ छह से वासिठ सर्ग किये मुनि रामायण कहँ ॥ किया महा पाख्यान गम संबंधी मुनिवर ॥ सब चौवोश सहस्र सकल जन पाप भीतिहर ॥ ६३॥ ६४॥ सवैया ॥ शुभ प्रारथ्य महोपति नंदन राम महासय को जस गायों ॥ ताहि सुनें जु समाहित मान समान उहै शुचि गंग न्हायों ॥ जोर पढ़े प्रति पर्व कथा यह पापनि ते तिनि पाप छुड़ायों ॥ स्वर्ग महासुख धि लहैं सु इहां पर लोकु दुई