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APPENDIX III.
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End.-हमसै चूक कहा परी सुन राजकुमारो निज रूठन का हेतु मुहि कही विचारी २ चंद्रकला तुमहूं कही जो जानहु कारन जिहि विधि वेगि होइ प्रिया मान निवारन ३ कहत सषो कर जोर कै सुन राजकिसारी कब के श्रों
चतुरेस विनवत तुहि पारी ४ समुझ सपो हठ मान मन जुगत वनाई सकल 'प्रीति को रीति पुन पुन समुझाई ५ जी नहि मानत माननी हठ फेर न रहै तर. कहु व्याजे वरन समुझ उलटे पछितैहै ६ समुझ सषी के वचन मान गत प्रति अकुलानी वंक विलोकन चार पिया चित म्रदु मुसक्यानी ७ मिले परसपर जुगल रसिक लीला रंग भीनै लछमन सरन विलाक केलि भे रति पतिहोनै ८ इति संपूरनं समापतं ॥१॥
Subject.-भिन्न भिन्न कवियों के पद हारी आदि । No. 51. Pada, by different authors. Substance--Countrymade paper. Leaves--5. Size--71 x 3 inches. Line per page--8. Extent--65 Ślākas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshamana Kota, Ayodhya. ___Beginning.-श्री सीताराम ॥ राग सूहा चौतारो ॥ वनि ठनि पावत हैं रो राम म्याम घन गजगमनिहरन || चारन चित मनोज उपजावन सेहत मुंदर नूपुर चरन ॥१॥ कानि मुकुट कछै नट ज्यों सखि मोहन कंकन कुंडल करन । रामसखे पिय विवस करै सव जोहत सिद्धन सुरन नरन ॥२॥ राग मुघराइ चौतारो ॥ सव मिलि गावो री सजनी चारु मंगल प्रव जन में राम मुषकारी ॥ प्रति मनभावन रस उपजावन विपिन प्रमोद विहारी ॥१॥ वरषत सुमन वजाइ पनग सुर प्रगटे जानि षरारी ॥ रामसखे चहुं दिसलंका विनु वयो आनंद विनि भारी ॥ २॥ राग मारंग चौतारो ॥ कीड़त वसंत कुंज हरि शाम श्रवन वट छाहीं फूले ढाक काम पावक मनु छइ रत नागिरि माहीं ॥ सरजू कमल कमल थल महकनि चलति पवन चितचाहीं ॥१॥ ___End.-पेमटा ॥ चला दपा लडेतो लाल झना झलत हे ॥ गगवत गीत रंगीली रंग सेा नृत्यत लय सुर ताल ॥१॥ रसिक सिरोमनि राजकुंवर अति सुंदर सियावाल ॥२॥ नष सिष भूषन वसन मनोहर झनकत मुक्कामाल ॥३॥ चडि विमान सुरवधू निहारे मन मे होत निहाल ॥४॥ सरजुसम्बी दो झुलत झुलावत करत अनोपो ष्याल ॥ ५॥ श्री सीताराम पद।
Subject.-विविध पदों का संग्रह।
No. 52. Pada Sangraha. Substance-Country-made paper. Leaves-120. Size-8/" x 4". Lines per page-18.