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APPENDIX III.
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तमारू नाम ॥ गोवदन रसिया रे प्राणजोवन त्येरे राम वोल्या देवदमन मारू नाम रे ॥ महिमा चाल्यो वज माझज्यों पूरण क्यामन काम ॥ गोवर्द्धन रसिया रे॥११॥ दई दूध ब्रजवासी के राने ग्रारोगे नंदलाल रे॥ कारखंड मै जैई महाप्रभू जी ने आज्ञा करी तत्काल ॥ गोवर्द्धन रसिया रे ॥ १२ ॥ इंद्र नाग ने देवदमन प्रगट्या ते व्रजमाय रे ॥ गिरिवर ऊपर आप पधारो मारी सेवा चलावो तांय ॥ गोवर्द्धन रसिया रे ॥ १३ ॥ गिरिवर ऊपर आप पधा(रो) प्रासा सामल्यां निज नाथ रे ॥ अंगो अंग भेटी सुख उपज्यू जाड़ता पछी वेड हाथ ॥ गोवर्द्धन रसिया रे॥१४॥
अपूर्ण Subject.-श्रो मथुरेश को वन्दना । यथार्थ में यह गुजराती भाषा का ग्रन्थ है।
No. 46. Mūlasthāna ki Vārtā. Substance-Country-made paper. Leaves-20. Size-61 x 5 inches. Line per page-8. Extent-130 Slokas. Appearance-Old. Character - Nāgari. Place of Doposit-Śrī Dēvaki Nandanāchārya Pustakālaya, Kamabana, Bharatapur.
Beginning. - श्री कृष्णायनमः अथ मूल स्थान को वार्ता लिख्यते । तहां पव पद्मनाभ दास जी प्रभूदान जो इनका परस्पर रहस्य वार्ता प्रांतर्य लीला वर्णन कोने हे सा श्री स्वामिनी जी के ग्राभरणं तेश्रो स्वामिनी जोको सहचरीन का प्रागटर श्री वंदावन ग्रादि प्रखंडित हे सा श्री प्राचार्य जो महाप्रभू मापने प्रगट कीनो हे परि यह लोला तो प्रांतर्य है उहां श्री महाप्रभू जी कल्पद्म पर परम रसावेष्टित हे तिनके अंग अलौकिक सूर्य को सो प्रामा ताहु ते विशेष प्राभायुक्त भुवनि पंक्ति गोलाकार तहां श्री यमुना जी के दोऊ तट सिढ़ी रत्न खचित सौवर्ण सुवास सहित चैतन्यात्मा कोमल सौरभ युक्त जो श्री महाप्रभू जी के चरणलीला के जोग वल ते सुवर्ण हीरा रत्न प्रगटाये ता करि के दोउ श्री. यमुना जी के तट तथा सिढ़ीह सिद्धि भई तेसे ही तट पर रासमंडल स्याल सिद्ध भये।
End.-एतादश असाधारण वैभव गूढ़ धन हे संपति श्री मथुरेश जू के वैभव हे नमामि हृदये या कलिकाल के विषे पाप गोप्य रीत करि के लिग्वे हे श्री मद्गोपी जन वल्लभ द्रदय सरोजातर वार्ता हे ॥ १॥ इति श्री पद्मनाभदान जू तथा प्रभुदास को संवाद संपूर्णम् शुभं भवतु कल्याणमस्तु । . ____Subject.-श्री मदल्लभाचार्य को मूलस्थान को वार्ता-उनका वज विहार वर्णन । श्री पद्मनाभ तथा प्रभुदास का वार्तालाप ।