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________________ APPENDIX III. 445 Beginning.-श्री गणेशायनमः श्री सोतारामजो॥ अथ लिख्यते कोकसार ॥ दोहा॥ ललित मुमन धनु अलि नव(ल)तन छबि अभिनव कंद मधु रति हित अति रित घन जय जय मदन अनंद ॥ १ पनच २ लोक ३ सुख करना ४ यह दुख हरन वियोग यस्व भक्ति एक भगवंत को भोग सा भामिनि भोग बरनो काम अभिराम छवि बरनहु भामिनि भोग । सकन काक दधि मथन कर रची सार सुख जोग ॥ वहु संकट में दुख हरन बहु सुख करन प्रयोग। मनुष रूप होइ अव तरेऊ तोनि भाति को भाग ॥ द्रव्य उपावन हरिभजन और भामिनी भाग । ललित वचन सब कविन के सुरति करत सव काय द्ग अंजत सव कामिनि भेद सवनि में होय॥ End. - यह यंत्र सा तिजारी जाय देषते छूट जाई -~- -- - ... . ..--.. वह यंत्र नजर न वधै पास राखै तो. तः वाः । व. भ्राः भः भ्रमः साः यह यंत्र लिख के पीपर के पत्ता में हाथ में वांधे इक!तरे वै दाहिने हाथ में तो वात जड़ाई कतरो नाई जूग को डारै Rs 32 Subject.-इस पुस्तक में बहुत से जंत्र मंत्र हैं जो दवा की जगह प्रयोग में लाये जाते हैं। 29 29
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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