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APPENDIX III.
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Beginning.-श्री गणेशायनमः श्री सोतारामजो॥ अथ लिख्यते कोकसार ॥ दोहा॥ ललित मुमन धनु अलि नव(ल)तन छबि अभिनव कंद मधु रति हित अति रित घन जय जय मदन अनंद ॥ १ पनच २ लोक ३ सुख करना ४ यह दुख हरन वियोग यस्व भक्ति एक भगवंत को भोग सा भामिनि भोग बरनो काम अभिराम छवि बरनहु भामिनि भोग । सकन काक दधि मथन कर रची सार सुख जोग ॥ वहु संकट में दुख हरन बहु सुख करन प्रयोग। मनुष रूप होइ अव तरेऊ तोनि भाति को भाग ॥ द्रव्य उपावन हरिभजन और भामिनी भाग । ललित वचन सब कविन के सुरति करत सव काय द्ग अंजत सव कामिनि भेद सवनि में होय॥
End. - यह यंत्र सा तिजारी जाय देषते छूट जाई
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वह यंत्र नजर न वधै पास राखै तो.
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वाः । व. भ्राः भः भ्रमः साः
यह यंत्र लिख के पीपर के पत्ता में हाथ में वांधे इक!तरे वै दाहिने हाथ में तो वात जड़ाई कतरो नाई जूग को डारै
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Subject.-इस पुस्तक में बहुत से जंत्र मंत्र हैं जो दवा की जगह प्रयोग में लाये जाते हैं।
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