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APPENDIX III.
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Beginning. - श्री गणेशाय नमः ॥ अथ काव्य अंगः ॥ या रामायण में श्री गोसांईजी जावत बाय के अंग घरे हैं | अरु विना काव्य जाने बहुत जन बहुत ठौर शंका करतु है ताते लक्षण और काव्यन के ग्रंथन के उदाहरण या रामायण के सरल रीत मे लिखे जाते हैं अथ काव्य लक्षण | शब्द अर्थ सुंदर गुणयुत दोष रहित ॥ अथ काव्य प्रयोजन || जस संपति आनंद दरिद्र नाश चातुरता संसार अरु राम बस होवा ॥ अथ काव्य का कारण ॥ चित्त ताके कारण तीन शक्ति ॥ १ ॥ वितयति || २ || अभ्यास ॥ ३ ॥ शक्ति देवक या यथा जहि पर कृपा कहिं जन जननी कवि उर अजर नचावहिं वानी ॥ १ ॥
Eud. -- अथ अंतर नापिका जाको अर्थ छंद के भीतर ही निकरे यथा छप्प कहै पति पितु नाम देव अर्पित का कहिये सज्जन का का कहत कौन हिय आनंद रहिये कौन चरित सुख देई कहां ते सरजू आई छंदवध्य का करत राम जस भाषा गाई ॥ यामो यह चाप निकसतु है शंभु प्रसाद सुमति हि तुलसी रामचरित मानस कवि तुलसी इति अंतर लापिका अथ बहिनीपिका जो अर्थ बाहर ते आवे यथा कह्यो नाम विपरीत कै जग में भयो प्रसिद्ध मा अनादि सम है ये जान लेहुकर सिद्ध यामें यह चौपाई उलटा नाम जपत जग जाना मीक भए ब्रह्म समाना अब चित्र अस्व गनि चक्रं नमामि भक्तवत्सलं कृपाल शील कामलं भजामि ते पदांबुजं प्रकामि नाम स्वधामदं ॥ अथ सोय वंधः ॥ अरुन पराग जलज भरि नीके समि हि भूप अहि लाभ अमा के ॥ [ इसके पश्चात् - नालबंध षड्रबंध त्रिशूनबंध, नागबंध, छत्रवंध, किरीटबंध आदि के चित्र लिखे गये हैं । ] इति श्री मानम दीपकायां काव्य अंग वर्णनं नाम तृतीया प्रकाशः ॥ Subject. - काव्य के अंग तथा लक्षण आदि का वर्णन ।
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No. 39. Kissä. Substance- Country-made paper. Leaves — 95. Size - 61 x 53 inches. Lines per page — 8. Extent—760 Slokas. Appearanco—Old. Character— Nagari. Place of Deposit-Sri Devaki Nandanachārya · Pustakālaya, Kāmabana, Bharatapur State.
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Beginning.— X X ज के छुड़ावन वास्ते प्राप ध्याये ॥ १ ॥ एक चार के मारन वास्ते पातसाह हुकम कीया चार कही माती गाव काहुर मोकू आवता है सेा कोई जारभता नहीं ॥ पातस्याह चार कू जीवतारापि मसाला मंगा दिया ॥ चार मै मसाला लगाय जमो तैयार करि
रज कराई ॥ जमी तयार हुई है । परि में तो चार हूं सा मोरे हाथ सूं मोती उगता नहीं पर जानें सारी उमर में चोरी करी न हाय ताके हाथ सूं उगता है ॥ पातसाह सब उजीर उमरांऊं सा कहो परि यानव करि जो हमारे हाथ सूं भी