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निकारेगी || निकागो याद कर चोर के चुरायवे की सषी को सिंगार सब तेरे तन धारेगी || धारेगो न शंक राधे कर में गुलान्न लै कै देखत ही लाल ताय लाल कर डागी ॥ ७ ॥ सवैया ॥ वे कबहूं नहि झांकत द्वार पड़ी पलका पर ऐस उड़ाये || पांय कभू न धरो धरतो जिनकी छवि छांह कोऊ नहि पायें ॥ सेा शिवराज तेरी सुन धाक सुवैरन की पतनों बिल्लाये ॥ अंग सम्हार नहीं पनिही बिन वारन माग सम्हारत प्राये ॥ ८ ॥ फागुन में मिलि गोपकुमारि सुमोहन को अपने घर लायें ॥ ताहि सिंगार २ भली विधि दूसर मोहना रूप बनायें ॥ जात चली वषभानु नली ढिग मारग में यह साचत जाय || जानन लय कोऊ छल की विन वारन माग - म्हारत आयें ॥ ९ ॥
APPENDIX III.
पूर्ण ।
Subject. - स्फुट कवित्तों के संग्रह ।
No. 36. Kavitta Sangraha by several pocts. SubstanceCountry-inade paper. Leaves-103. Size-6 X 9 inches. Lines per page – 20. Extent – 610 Slokas Appearance. Old. Character—Nagari. Place of Deposit-Bharati Bhavana, Allāhābad.
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Beginning.—श्री गणेशायनम श्री रामचन्द्रायनम X नन एक कहे नर क्यों चतुरानन चारहू वेद बतावै ॥ जो ऋषि सिद्ध प्रसिद्ध हसिद्ध सदा मन वंछित सिद्ध सेा पावे ॥ नारद सारद जावत है सनकादि सकादि सबै गुन गांव ॥ वंदित ये सब सेश सुरेश दिनेश धनेश गणेशहि धावै ॥ विधि के समान है विमानी कत राज हंस विविध विवुध जुन मेरु सेा अचल है दीपति दिपाता दीप दीपियत दूसरा दिलीप से दछिना का बल है सागर उजागर कि वहु वाहिनी को पति ग्यान दान प्रिय किधों सूरज अमल है X सब विधि समरथु राजै राजा दशरथ भागीरथी पथगामो गंगा कैसेा जल है २ साहत मंचन को अवनी गज दंत नई छवि उज्जल छाई । ईस मनो वसुधा में सुधाधर मंडल २ मंड जुन्हाई ॥ तामे केसव दास विराजत राज कुमार सबै मुखदाई देवन सौ जनु देव सभा सुभ सोय स्वयंवर देखन आई ॥
End.-मोनसम थरराय उघरत, दर तक छुपात बाह्मन वल छलवे को निश्चै कर हेरे हैं जा तन निहारे हिया फारै वाराह ज्यों अरवे को परसराम फिरत नाहि (फे) है हैं वोरवै नरसिंह और वैध प्रवालविका तारवे को राघव गुलाव मन मेरे हैं मोहिवे का मोहन कलंक विना निसकलं (क) कृष्ण औतार किधौं प्यारी नैन तेरे हैं
Subject. — कई कवियों के कवित्तों का संग्रह ।