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APPENDIX III.
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Beginning.-श्री गणेशायनमः अथ जोतस विचार ॥ मुमिरि राम घन स्याम उर ते ॥ धनुष वर वान ॥ अथ जातिष के सिंधु को वर्णत दस मन ॥१॥ अचरज अज ते कमल कर ॥ कमलज अजते षर्व ॥ सिंधु बुंद अरु वूद ते सिंधु सुगम सुष सर्व ॥ जोतिष जाको रूप है रैषनि मैरु दंड ॥ तिथ दिन जोग नछत्र सिर छत्र मंड मांड ॥ ३ ॥ नंदा भदा अरु जया रिक्ता पूर्णा हाइ ॥ पांचौ संज्ञा तिथिन को इश कम से फिर जोइ ॥ ४॥ अथ नछत्र नाम ॥१॥ २७ अस्वनो भरणी कृतिका रोहिणी मृगशिर जानि ॥ पार्दा और पुनर्बसु पुण्य श्लेषा मानि ॥ मघा पूर्वा फालुनि गुनिय ॥ उत्रा फाल्गुन और ॥ हस्तर चित्रा स्वाति गर्न पुनि विसाष सिर मार गइ अनुराधा ज्येष्ठा ग्यवश मूला पूर्वाषाढ़ उतराषाढ़ श्रवन पुनि ॥ कहत धनिष्ठा वाढ़ शतभिषा पूर्वा भादपद उत्रामाद जानु ॥ अंत रेवतो नषत प सताइश परमानु ॥
End.-वाजन भूषन भूमि हय ॥ गोकर रल दुकान ॥ नारि अन्न कंचन सुषद ॥ भृगु का नृत्य र गान ॥ ७७ ॥ लोहा सीसा पाप विष ॥ मिथ्या वास्तु प्रवेश ॥ हठ कर नाथिर काम श्रुम शनि को जानु विशेष ॥ ७८ ॥ इति ॥ अथ शिवोक्त मुहुर्त वार ॥ xxxxxxx (बीच के ३ पृष्ट नहीं है)?
इति श्री तुलसी शवदार्थ आदि प्रकाले जोतिष विचार अप्टमा भेद ॥५१॥ संवत १९२३ मिति भाद्रपद बदि पंची भृगी वाशरे लिषतं स्वामी कल्यान । सोकारपुर मध्ये ॥
Subject.-ज्योतिष ।
No. 3-1. Kavitta Dolha. Substance-Country-made paper. Loares-1-1. Sizy-y x 5 inches. Lines per page -1:2. Extent---1154 Slokag. Appearance-Old. Charactor- Nāgarī. Place of Deposit--Bābū Purushottama Dāsa, Vibrāma Ghāta, Mathurā.
Beginning.-श्री रामजी ॥ अथ निज कवित दोहा लिषते ॥ कवित ॥ उदै हेात जाके हटि जात पाप पुंज तम फैलत चहुंघांतें दुनी में उजियारा है ॥ करत प्रनाम सिधि हात मनकाम लहै सव सुषधाम असा भक्त प्रतिपारों है ॥ त्रिगुण सरूप हरिहर विधि ध्यावें ताहि गावें जस सारद गनेम सेस भारा है ॥ सात है वारा औ सहस्र किरननिवारो च्यार भुजवारो रवि साहिब हमारा है॥१॥ तू अंजनी पुत्र औ वायनंदन महा राम रणधीर का दास बलवान है उदधि ते पार रावणतनै मारि प्रजारि लंका दल्या असुर को मान ॥ ल्याय संजीवनी पाय लछमन लयो मात सिय साक टारन दई वांन || दुष्ट को मारि