SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ APPENDIX III. 437 xxx xxx है अरु जिसने मुतह सिद्ध प्रकाश जान्या तिसका विष्णु कैसे मारे फिर दैत्य कह्या हे विष्णु मेरे कुटुंबीवों का कैसे माया तेने तव विष्णु जी कहते भये मै किसी का नहीं मारा हे दैत तू विचार कर दंप जा बुदबुदा जन मा उठता है अरु फिर जलही विपे लीन हो जाता है तात बुदबुद का किन माया तातें सर्वस भए 'ऐसे ही कहा जा एकही आत्मा निरंतर है इतिहास पूग्न भगा । Subject.-अध्यात्म विचार । No. 31. Jānā (Jžānas Prabua Molishõpāya. SubstanceCountry-made paper. Leaves-1:33. Size-6 x 3 inches. Lines per page-17. Extent-About 2,000 Slokas. Character-Nagari, Appearanct-Old. Place of DepositBiţthala Dāsa Purushottama Dāsa, Mathurā. ____Beginning.-ॐ श्री सांता x x स्मीक उवाच x x x x यण लष दलोक x x इह बालकांड उ x x x वतोस सहस्र श्लोक x x x उपदेश किया है। सा x x श्रवण कराया है। निर्वाण x x x उपदस किया है॥ सा सब क x x x करि कै तुझको क ह्या ॥ तिसते उपरांत खिल प्रकरण निर्वाण की दृढ़ता के निमित्त कह्या ॥ सा कैसा है षिल प्रकरण ॥ जा वचन आग कहै है ॥ पास जा नही कहै है ॥ तिनको मःच्चै करि के कहत है। इसी ते (ह)सका नाम षिल प्रकरण x x अरु जिम विषं संपूर्ण जो के लक्षण कहे हैं। जैसा षिल प्रकरण दृढ़ वाध के निमित्त x x (वशिष्ठ जी) कहते है। वशिष्ठ उवाच ॥ हे राम जी पूर्ण सर्व जा जीव है तिनको अनुभव प्राकाश ते जगत हुवा है ॥ तिष वि ॥ गवरण अरु जावण इतियादिक क्रिया--देषोतो है मा आत्मा सत्ता अपने मुभाव तें इता नहीं हुई है। सर्वदा से कोत्यौ है। हे राम जो जिनको अपने सुभाव विर्षे इस्थियोतई है। तिमका यह जगत कर्मल स्वच्छ चिदाकास भासता है॥ End.-इह मोक्ष उपाइ परमवधि का कारण में तुझका कहना है संपूरण तिसके सार को धरि करि रघुवंस को कुल कृतकृत्य भई है ॥ अरु जा उस सभा विपे जज्ञासी थे सा भी कृतकृत्य जोवन मुक्त हुऐ विचारणे लागे निस निश्चे को धारि करि तू भो जोवन मुक्त हुआ विचरु ॥ अरु अपणा जो कछ प्रकृन पाचार है तिसको करि मैं जानता हैं। जा तू परमवाध का प्राप्त हुआ है ॥ इति श्री जाना ‘प्रष्णमोक्षोपाये संख्या वर्ननं नाम सर्गः ॥ इस सग विषे कथा के सार कहे हैं । ताते इसका नाम संख्या है ॥ शुभमस्तु सर्व जगताम् ॥ Subject.-ज्ञान संबंधी वशिष्ठ और श्री राम जो का संवाद ।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy