SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 436 APPENDIX III. No. 29. A collection Substance—— Leaves — 6. of several Holis. Country-made paper. Size - 112 x 5 inches. Lines per page-11. Extent — 145 Ślokas Appearance— Very old. Character—Nāgari. Place of Deposit - Pandita Chandra Šena Pujārī, Gaigaji ka Mandira, Khurjâ. लै Beginning.—श्रीगणेशाय नमः ॥ राग गौरी ॥ पेलत फाग प्राजु रघुवंसी बोलत हो हो होरी || सुंदर स्याम राम साभानिधि वनी अनूपम जारी ॥ १ ॥ सुनि धुनि गान वाम निजु पुर की सिमिट जई एक ठोगे ॥ करि सिगार केसरि कुमुकुम घसि भरि भरि पुर टक मेोरी ॥ २ ॥ एक लिये कर वेन वासुरो गावति नवल किसेारी ॥ एक लिये कर बूका बंदन गुलाल एक दोरी || End.—राग सोरठि ॥ जमुना के तट श्री वृन्दावन हरि संग पेलें गोपि हा ॥ १ ॥ मोहन लाल गोवर्धन धारो ताको नष मनि पो हो ॥ १ ॥ सज सज लद तन पीतंवर कट कर मुख मुरत्नी धारी हो | टि टि पाग वनी मन मोहन ललना सबै हकारी २ साजि सिंगार चली वृज सुंदरि नप सिष साभा तानी लोक वेद कुल धर्म सहित काहु को वदति न कीनी ३ नेन सां नेन वेन कर से कर भुजा घरे हरि ग्रीवां ॥ मधि नाइक गोपाल विराजत सुंदर ताकी सवां ॥ ४ ॥ Subject. - होली संबंधी विविध गानो का संग्रह · No. 30. Itihāsa. Substance-Country-made paper. Leaves 32. Size--10 × 6 inches. Lines per page-11. Extent—700 Ślokas Appearance — Old. Character—Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kōta, Ayodhya. Beginning.—श्रीगणेशाय नमः ॥ निदाग नाम राजा था। एक समं निकट रिषभ देव के प्रावत भया । अरु प्रश्न करत भया कि हे ब्रह्म गुर में संसार सागर में डूबता है । तुम कृपा करके मुझको पार उतारो। तव रिषभ देव कहत भया । तं राजा समुद्र विना जल नहीं होता । अरु जल जब मुझका दृष्टि आवे ॥ तब बेड़ा लेकर तुझको पार उतारों । जब जन्न हो नहीं तब बेड़ा कैम कहिये ॥ तब पगसर मैत्रेय सां कहत भया ॥ कि हे मंत्र जैसे मैने तुझको चिरकाल कर उपदेश करत भया हो ॥ तैसेहो रिषभ देव || दस सहस्र वर्ष तक राजा निदाग को उपदेश किया ज्ञान का उत्पन न भया । मेगे तो अल्प बुध है ॥ अल्प भी क्या कहिए मेरे विषे तो बुध ही नहीं जब तक तूं आपही त्याग न करेगा || तब मैं क्या करें ॥ End.-मेरे कुल के सभ बुधहीन थे नहीं तो तीनों देवता को बस करना सुगम ही था ऐसे हो त्रिलोकी का राज करते पर किसी का भै न करते मेरे बड़े थे हरनावस ते आद लेकर से ऐसा सुष किमो ने नहीं जान्या सुतह सिद्ध प्रकाश
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy