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APPENDIX III.
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है अरु जिसने मुतह सिद्ध प्रकाश जान्या तिसका विष्णु कैसे मारे फिर दैत्य कह्या हे विष्णु मेरे कुटुंवी का कैसे माग्य तेने तव विष्णु जी कहते भये मै किसी का नहीं मारया हे देत तू विचार कर देष जा बुदबुदा जन मा उठता है अरु फिर जलही विषे लीन हो जाता है तात बुदबुद का किन माया तात सर्वस भर 'ऐसे ही कहा 'जा एकही आत्मा निरंतर है इतिहास पूग्न भग।
Subject.-अध्यात्म विचार । No. 31. Jānā (Jñāna) Prabua Mokshöpāya. SubstanceCountry-mado paper. Leaves-1:33. Size—6. x 3 inches. Lines per paag-17. Extent-About 2,00) Slokas. Character-Nagari. Appearance-Old. Place of DepositBiţthala Dāsa Purushottaina Lāsa, Mathurā.
___Beginning.-ॐ श्री सांता x x स्मोक उवाच x x xx यण लष दलोक x x इह बालकांड उ xxx वतोस सहस्त्र श्लोक x x x उपदेश किया है । सेा x x श्रवण कराया है। निर्वाण x x x उपदंस किया है ॥ सा सब क x x x करि कै तुझका कह्या ॥ तिमते उपरांत विल प्रकरण निर्वाण की दृढ़ता के निमित्त कह्या ॥ सा कैसा है पिन प्रकरण ॥ जो वचन आग कहै है ॥ प्रारु जा नही कहै है ॥ तिनको मःच्चै करि के कहत है ॥ इसी ते (इ)सका नाम षिल प्रकरण x x अरु जिम विष संपूर्ण जो के लक्षण कहे हैं ॥ असा षिल प्रकरण दृढ़ वाध के निमित्त x x ( वशिष्ठ जी) कहते है। वशिष्ठ उवाच ॥ हे राम जी पूर्ण सर्व जा जीव है तिनको अनुभव प्राकाश ते जगत हुवा है ॥ तिष विवे ॥ गवरण अरु जावण इतियादिक क्रिया--दषोतो है मा प्रात्मा सत्ता अपने मुभाव ते इतर नहीं हुई है । सर्वदा से कोत्या है। है राम जो जिनको अपने सुभाव विर्षे इस्थियोतई है ॥ तिमा यह जगत कर्मल स्वच्छ चिदाकास भासता है॥
End.-इह मोक्ष उपाइ परमवाध का कारण मैं तुझका कहना है संपूरण तिसके सार को धरि करि रघुवंस को कुल कृतकृत्य भई है ॥ अरु जो उस सभा विषे जज्ञासी थ सा भी कृतकृत्य जोवन मुक्त हुऐ विचारणे लागे निस निश्चे को धारि करि तू भो जोवन मुक्त हुआ विचम् ॥ अरु अपणा जो कछ प्रकृन प्राचार है तिसको करि मैं जानता हैं। जो तू परमवाध का प्राप्त हुआ है ॥ इति श्रो जाना ‘प्रपामोक्षोपाये संख्या वर्ननं नाम सगः ॥ इम सग विषे कथा के सार कहे हैं । ताते इसका नाम संख्या है ॥ शुभमस्तु सर्व जगताम् ॥
Subject.-ज्ञान संबंधी वशिष्ठ और श्री राम जो का संवाद ।