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APPENDIX III.
पृ. १९९-२२४ भक्ति योग माहात्म्य द्वादश अध्याय । पृ. २४२-२६२ तेरहवां और चौदहवां अध्याय प्रकृतिगुण भेद का। पृ. ३७४ पन्द्रहवां--पुरुषोत्तम योग ।
२९५ सालहवां-संपत्ति विभाग ।
३१२ सत्रहवां--विभूति योग। पृ. ३३९-३४४ मोक्ष योग-अठारहवां अध्याय । पृ. ३४८ माहात्म्य समाप्ति । पृ. ३४.-३६२ धर्म संवाद । पृ. ३६२-३८६ गर्भ गोता। पृ. ३८६-३८८ ग्रंथ समाप्ति ।
Note.-पद्य । ग्रंथकर्ता का कोई पता न चला । निर्माणकाल का भी कोई उल्लेख नहीं है। इस प्रति के लेखक पक रघुमल खत्री हैं जिन्होंने इसे १८६२ वि० सं० में लिखा । पुरानी कैथी मे लिखी हुई होने के कारण पाठ अत्यन्त अशुद्ध पौर अस्पष्ट हैं। ____No. 27. Gwalini Jhagario. Substance-Country-made paper. Leaves-24. Size-6 x 6 inches. Lines per page-8. Extent-192Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Composition-Samvat 1785 or A. D. 1728. Place of Deposit--Raugi Lāla, Kosi, Mathurā.
Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ ग्वालिनी झगरा लिख्यते ॥दोहा॥ दध बेचन मिस ग्वालनी लगे प्रोत के वान ॥ पहुंची वा मग जाय के बंसो वजावत कान्ह ॥१॥ कवित्त ॥ हात परभात ही चली है व्रज ग्वालनी ग्राभूषन सम्हार धरै सीम माट पोर को ॥ निकसत याही मग धरत पिछोये पग नैनन की चोट करै प्रैच पर चीर कां ॥ मदन मगर सा तो लाग रहै प्यालन में सायन को टेर के लषत चली धीर की ॥ भाहै मटकाय कै दिषाय मव भाव चली काहू मिस देपू री यह छोहरा अहीर कौ ॥ १ ॥ अंतरजामो आप प्रभु अंतर की पूछी बात लकुट सम्हार हाथ घेरी गैल जाय कै ॥ देवो न सयानी दान कैसै हु न पावो जान काढू उर मान ग्राज लैहू जाँ अघाय के ॥ संउ मग पाही काज करु ना काहू की लाज जेते वन मेरौ गज फारौं माट धाय कै ॥ मदन मुगर कै व्योहार यही नित प्रति दीजिये जगात फेर वेचा दध जाय के ॥२॥
End.-सत्रह से संवत पिच्यासो और वर्ष जाननी के मद सा राज भादौ मास पहचानिये ॥ तिथ कृष्णपक्ष नौमी ठोस वुधवार धरै अकर सुधार वो है। सुभ घरी जानिमै ॥ लोला फलदायक मदन हरि राधिका की हितकर जिनके