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________________ APPENDIX III. 433 No. 26. Gitā (Bhīvhi). Substancu--Country-made paper. Leaves-388. Size-8 x 6 inches. Lines per page-10. Extent-5,000 Slokas. Appearance-Old. Character-Kaithi (Nāgarī). Dato of Manuscript-Sainvat -1862 or A. D. 1805. Place of Doposit-Pandita Mahādēva Prasāda Purohita, Sahazadapur P. 0., District Faizabad. Beginning.-श्रीकृष्ण जी श्रीगणेशायनमः। सत्य गुरु प्रसाद । श्रीरामाय नमः श्रीभगवद्गीता माहात्म्य लिख्यते । एक समय विपे कैलाश पर्वत उपर महादेव और पार्वती को आपस मे गोष्टी हुई । ता गउग पार्वती पृछ हैं । हे श्री महादेव जी तुम अंतःकरण मंह किस ज्ञान कर पावत हो । जिस ज्ञान कर संसार के मनुप्य तुम को शिव करि पूजा देते हैं । योग प्रारा वहेरा (और वैराग्य) के तुमरो करम देखाई दे देहै जी । मृगछान्ना ओढ़ अंग विवे विभूति और गले मे सरप पहरिया है जी । अरु मुंडिअ को माला पहरे हो इनमे तो कोई करम पवित्र नाहो जी। तुम मैनु इह गियान मुनाया जो। जिम गियान करि तुम अंतःकरण पावत हा ॥२॥ श्री महादेवावाच । ता श्री महादेव जी कहिये पार्वती मन जिस ज्ञान कर में अंतःकरण में पावति हे। ला गियान मनु ॥ जिस ज्ञान कर बाहर के करम वियापत नाही । सा वह गीता ज्ञान है। ____End.-श्री भगवान जो तरी मग्नानि नाम जपावना । पाथो श्री गोता जी अरु धर्म संवाद अरु गर्भ गीता संपूग्न भइ मिति पोख मुदी २ दुइज रोज पतवार संवन् २८६२ दस्त वत रघुमन खतरो रुदाली के । मजो सहाय ॥ Subject.-श्री पद्मपुराणांतर्गत उत्तर गंडस्थ सती ईश्वा संवादे-गोता माहात्म्य । पृ. १---६ कथा प्रसंग। प्र. ६--१८ अजन विपाद याग नामक प्रथम अध्याय का माहात्म्य वर्णन । पृ. १८--२१ सती ईश्वर संवाद । पृ. २२--३०. द्वितीय अध्याय माहात्म्य मांख्ययाग । पृ. ३०--४३ मती ईश्वर संवाद । पृ. ४३----५७ कर्मयोग की महिमा । पृ. ५४--५९ संवाद समाप्ति । पृ.५९----७२ कर्म संन्यास योग और उसकी महिमा । पृ. ७२-१६९ दशम अध्याय तक का वर्णन आर माहात्म्य । पृ. १६९-१९९ विश्वरूप दर्शन-और योग नाम ग्यारहवां अध्याय ।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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