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________________ 432 APPENDIX III. दरशन करै मुक्ति भुक्ति फल होइ॥३॥ सा इतिहास सुनै गुनै कह्यौ पुरातन साषि लक्ष्मी सै| वैकुंठ मै नारायण जू भाषि ॥ ४ ॥ कैलाश सिषर उत्तिम सदा तहां रुद्र का धाम पारवती पूछन लगी सब के पूरन काम ॥ ५॥ पारवत्युवाच ॥ चौ ॥ हे प्रभ तुम रुद्र है। सेाई जातै तुम पवित्र अति हाई सकल जीव तुमही को धावै तुम्हरी दई मुक्ति सा पावै ॥ ६॥ वैल चढ़े बाढ़ मृगछाला अंग भस्म मुंडन की माला विषधर सर्प कंठ मै साहै विष धतूर को भक्षन जोहै ॥ ७ ॥ दाहा ॥ जेते लक्षणि दषियै उत्तिम एक हु नाहि क्यो पवित्र तन मन भयै सा कहिये समझाय ॥ ८ ॥ महादेव उवाच ॥ मुनि दवा ता सा कह्यो निज अंतर को ज्ञान जाहि पाइ सब कछ करी कर्म लगे न निदान ॥ ९ ॥ ची ॥ सा वह गीता ज्ञान कहावै मेरे हिरदय माहू रहावे दह धर्म सव कर्म कराउ गीता सुमिरि परम पद पाउ ॥१॥ ____End.-जाते जीव मुक्ति पद पावै छहा जतन परगट सा गावै गीता ज्ञानी सुद जो होइ और तुलसी पाराधै साइ ॥ १२॥ एकादशी व्रत मन मे धरै मुक्ति होइ भवशागर तरै लक्ष्मी सा बोले भगवान अर्जुन को दोनो यह ज्ञान ॥ १३ ॥ मुनि अर्जुन पानंदपद पाया गोप्य ज्ञान मै तुमहि मुनायो गोता रूप अमृत है सारा मुनिक जीव हाइ भवपारा ॥ १४ ॥ गीता कल्पवृक्ष मै करो कहत सुनत सा संसै हसौ चारिवेद पढ़ि जो फल होइ गीता श्रवण किये फल साइ ॥ १५॥ मात उपजै कमल मुचारी वेद रूप कहिये निरधारी गीता है सेा सार सुगंधी तातै गीता सम नहि वंधी ॥१६॥ सर्व सास्त्रन मै गीता सार सव वेदन मै हरि निरधार सव तीरथ मै गंगा जाना सब धर्मन मे दया बषानी ॥ १७ ॥ विप्रहु मारै तन है साई गोता पढ़े मुक्ति पुनि हाई छत्री वस सूद है जेहा गोता पढ़ मुक्ति होइ तेहा ॥ १८ ॥ आपु तरै औरन को.तारै गीता ग्रंथ जो रोजु विचार ॥ नारायण लक्ष्मी कहै गीता मुमिरि मुक्ति पद लहै ॥ १९ ॥ गोता गोता गीता करै पौरु ग्रंथ जिनि पढ़ि पढ़ि मेरे कह्यौ मापु मुषतै भगवान सा समझे साई जु सुजान ॥ २०॥ इति श्री पद्मपुराणे उत्तर खंडे सति ईश्वर संवादे गीता माहास्ये संपूर्णम् ॥ संवत् १८६६ लिखते मातोराम पठनार्थी कुंवरजी केवल कृष्ण जी ॥ रामजी सहाय ॥ Subject.-गीता माहात्म्य । Note.-कवि का नाम कहीं भी स्पष्ट रूप से लिखा हुआ नहीं मिलता। "और तुलसी पाराधै साइ" इसमें तुलसी जो नाम आया है वह कवि का नाम हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता । प्रतएव यह संदेहात्मक है। निर्माण काल भी नहीं है। पुस्तक को प्रति पुरानी है। कई स्थलों मे पत्रे परस्पर एक दूसरे से चिपक गये हैं। पर एक अच्छी जिल्द में बंधी हुई है।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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